Book Title: Gurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Hariprasad G Shastri
Publisher: Jawahar Pustakalaya Mathura

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Page 299
________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २६७ इस छन्द का उपयोग किया है ।१ युद्ध आदि के वर्णनों के लिए यह छन्द अधिक उपयुक्त एवं लोकप्रिय रहा है। इन कवियों ने इस छन्द का प्रयोग भक्ति, वैराग्य एवं उपदेशादि विषयों के लिए भी किया है। जिनहर्ष, समसुन्दर, धर्मवर्धन तथा भट्टारक महीचन्द्र ने 'छप्पय' संजक रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। इनमें भी धर्मवर्धन की 'छप्पय वावनी' तथा भट्टारक महीचन्द्र की 'लवांकुश छप्पय' विशेष उल्लेखनीय रचनाएं हैं। प्रथम धर्म तथा उपदेश से सम्बन्धित है तथा दूसरी मूलतः शान्त रसात्मक कृति है। इसमें वीर रस के प्रसंग भी कम नहीं हैं। इसी तरह 'दोहा' और 'सवैया' छन्द संज्ञक रचनाएँ भी प्राप्त हैं । ये छन्द जैन कवियों के प्रिय छन्द रहे हैं। दोहा लोक साहित्य का अत्यन्त सरल एवं लोकप्रिय छन्द है । प्राकृत एवं अपभ्रंश के अनेक ग्रंथों में इसका प्रयोग हुआ है । हिन्दी के भी प्रायः सभी प्रमुख कवियों द्वारा यह प्रयुक्त हुआ है। इस युग के जैन कवियों में समयसुन्दर, धर्मवर्धन, देवचन्द्र, यशोविजय, उदयराज, जिनहर्ष, लक्ष्मीवल्लभ, शुभचन्द्र भट्टारक आदि अनेक कवियों ने इस छन्द का प्रयोग किया है। 'दोहा' संज्ञक रचनाओं में उदयराज की 'उदयराज रा. दहा', लक्ष्मीवल्लभ की 'दोहा वावनी', शुभचन्द्र की 'तत्वसार दोहा' तथा जिनहर्ष की 'दोहा मातृका बावनी' आदि कृतियां विशेष उल्लेखनीय हैं। विभिन्न प्रकार के सवैया छन्दों की रचना भी इन कवियों ने पर्याप्त मात्रा में की है। इनकी 'सवैया' संज्ञक रचनाओं में आनन्दवर्धन की "भक्तभर सवैया', केशवदास की 'शीतकार के सवैया', जिनहर्ष की 'नेमिनाथ राजमती बारहमासा सवैया', जिनसमुद्रसूरि की 'चौवीस जिनसवैया', धर्मवर्धन की 'चौवीस जिन सवैया' तथा लक्ष्मीवल्लम की 'सवैया वावनी' आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इन कवियों ने इस लय मूलक छन्द में भक्ति, वैराग्य एवं विप्रलंभ-शृङ्गार की छन्द की प्रकृति के अनुरूप, उपयुक्त अभिव्यंजना की है। व्रजभाषा पाठशाला के आचार्य कुंवरकुशल मट्टार्क की "पिंगल' संज्ञक दो रचनाएँ भी प्राप्त हैं। 'पिंगल' छन्दसूत्रों के रचियता आचार्य का नाम था ।२ बाद में छन्दसत्रों या छन्द-शास्त्र के आधार पर रचित ग्रंथों को 'पिंगल' कहा गया। "पिंगल' शब्द का प्रयोग ब्रजमापा के अर्थ में भी हुआ है। कुवर कुशल भट्टार्क के १. तुलनी (कवितावली), केशव (रामचन्द्रिका), भूषण (शिवराज भूषण आदि । २. हिन्दी साहित्य कोश, प्रधान संपा० डॉ० धीरेन्द्र वर्मा, पृ० ४५१ ।

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