Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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प्रस्तावना
१५
ही 'गोम्मट' शब्द का व्यवहार दूसरे अर्थों में भी किया है। कर्मकाण्ड की अपनी अन्तिम प्रशस्ति में, जो आठ गाथाओं में निबद्ध है। सर्वप्रथम वह लिखते हैं
गोम्मट संगह सुत्तं गोम्मटदेवेण गोम्मटं रइयं ।
कम्माण णिज्जरटुं तच्चट्ठवधारणटुं च ॥६६५॥ इसकी संस्कृत टीका इस प्रकार है
"इदं गोम्मटसारसंग्रहसूत्रं गोम्मटदेवेन श्रीवर्धमानदेवेन गोम्मट
नयप्रमाणविषयं रचितम किमर्थं? ज्ञानावरणादि-कर्मनिर्जरार्थम ॥" अर्थात् गोम्मटदेव श्रीवर्धमानदेव ने गोम्मट अर्थात् नय प्रमाणविषयक यह गोम्मटसार संग्रहसूत्र ज्ञानावरण आदि कर्म की निर्जरा के लिए रचा।'
इसमें श्रीवर्धमान तीर्थंकर को गोम्मटदेव कहा है तथा गोम्मट का अर्थ नयप्रमाण जिसका विषय है, ऐसा किया है। हमें टीकाकार का यह अर्थ सम्यक् प्रतीक नहीं होता; क्योंकि महावीर स्वामी कर्मों की निर्जरा के लिए कोई रचना कैसे कर सकते हैं। इसी तरह गोम्मट का अर्थ नयप्रमाणविषय भी चिन्त्य होता है आगे लिखा है
गोम्मट संगह सत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य।
गोम्मटरायविणिम्मिय दक्खिणकुक्कुडजिणो जयउ ॥६६८॥ इसकी संस्कृत टीका में कहा है- 'गोम्मट संग्रहसूत्र, चामुण्डराय के द्वारा निर्मित प्रासाद में स्थित एक हस्त प्रमाण इन्द्रनीलरत्नमय नेमीश्वर का प्रतिबिम्ब और चामुण्डराय के द्वारा विनिर्मित दक्षिणकुक्कुट जिन सर्वोत्कर्ष रूप से जयवन्त हों।'
इसमें तीन कार्यों का उल्लेख है-१ गोम्मट संग्रह सूत्र, २ गोम्मट जिन, और ३ दक्षिण कुक्कुट जिन। गोम्मट संग्रह सूत्र तो गोम्मट के लिए संग्रह किया हुआ गोम्मटसार नामक सूत्रग्रन्थ है। गोम्मट जिनसे अभिप्राय श्री नेमिनाथ की एक हाथ प्रमाण इन्द्रनील मणि से निर्मित प्रतिबिम्ब से है, जिसे चामुण्डराय ने विध्यगिरि पर निर्मित अपने जिनालय में प्रतिष्ठित किया था। और दक्षिण कुक्कुट जिनसे बाहुबली की विशाल मूर्ति कही गयी है। इससे आगे की गाथा में इसी प्रतिमा की ऊँचाई का उल्लेख है।
जैसे पूर्व गाथा में 'गोम्मट' शब्द का व्यवहार 'गोम्मटदेवेण गोम्मटं रइयं' रूप से किया गया है, उसी प्रकार इस गाथा में 'गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो' रूप से किया गया है। 'गोम्मटसार' गोम्मट के लिए बनाया गया, गोम्मट जिनकी रचना भी गोम्मट ने की। अतः इन दोनों को गोम्मट नाम से कहना तो उचित है। किन्तु जिस पर्वत के शिखर पर इन्द्रनीलमणि निर्मित बिम्ब रूप में विराजमान की गयी, उस विन्ध्यगिरि को 'गोम्मट' कहना तो खटकता है। हाँ, विन्ध्यगिरि पर निर्मित जिस जिनालय में वह बिम्ब विराजमान की गयी, उसे गोम्मट कहा जा सकता है, क्योंकि उसकी रचना भी चामुण्डराय ने करायी थी। शायद इसी से टीकाकार ने 'गोम्मट शिखर' का अर्थ चामुण्डराय विनिर्मित प्रासाद किया है; क्योंकि यदि विन्ध्यगिरि को गोम्मट कहा जा सकता है, तो जिस चन्द्रगिरि पर गोम्मटेश्वर की उत्तुंग मूर्ति स्थापित है, उसे 'गोम्मट' न कहना असंगत प्रतीत होता है।
किन्तु आचार्य नेमिचन्द्र ने उस उत्तुंग मूर्ति का उल्लेख गोम्मट नाम से नहीं किया। वे अपने द्वारा रचित ग्रन्थ को 'गोम्मट संग्रह सूत्र' कहते हैं। चामुण्डराय को गोम्मट कहते हैं। चामुण्डराय के द्वारा निर्मित जिनालय को और उसमें स्थापित बिम्ब को 'गोम्मट' शब्द से कहते हैं, किन्तु बाहुबली की मूर्ति को गोम्मट शब्द से नहीं कहते। उसे वह दक्षिण कुक्कडजिन कहते हैं।
आचार्य नेमिचन्द्र के उल्लेखों के आधार पर यह तो निर्विवाद है कि चामुण्डराय का उल्लेख गोम्मट नाम से किया गया है और उसी के उस नामपर-से उसके द्वारा या उसके उद्देश से निर्मित वस्तुओं को भी
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