Book Title: Gobhil Gruhya Sutram
Author(s): Chandrakant Tarkalankar
Publisher: Calcutta Rajdhani
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[६ का.]
श्राद्धकल्पः।
अष्टौ वाराहेण ॥ १४॥ हप्तिः ॥१४॥
नव मेषमांसेन ॥ १५॥ सखल्वयं मेषत्रालभ्योबोद्धव्यः ॥ १५ ॥
दश माहिषेण ॥१६॥ मांसेन, इत्येव ॥ १६ ॥
एकादश पार्षतेन ॥१७॥ पूषतोगविशेषः ॥ १७॥
संवत्सरन्तु गव्येन पयसा ॥ १८॥ प्तिः ॥ १८॥
पायसेन वा ॥ १६ ॥ संवत्सरं बप्तिः। वाशब्दश्चशब्दार्थः समुचये ॥ १८ ॥
वार्बीणसस्य मांसेन हादशवर्षाणि ॥ २० ॥ प्तिरित्येव । वार्डोणमञ्च,
"त्रिपिवन्विन्द्रियक्षीणं श्वेतं वृद्धमजापतिम् । वार्डीणसन्त तं प्राहुयाज्ञिकाः पिटकर्मणि । कृष्णग्रीवारक्तशिराः श्वेतपक्षोविहङ्गमः ।
सवै वार्डीनमः प्रोतइत्येषानैगमी श्रुतिः”। इत्यूतलक्षणः । जरत्च्छागइति मेधातिथिः ॥ २० ॥
इति महामहोपाध्यायराधाकान्तसिद्धान्तवागीशभट्टाचार्यात्मजस्य श्रीचन्द्रकान्ततीलङ्कारभट्टाचार्य्यस्य कृतौ श्राद्धकल्पभाव्ये षष्ठी काण्डिका समाप्ता ॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606