Book Title: Gnatadharmkathangasutram
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 427
________________ Tथए य अल्लीणसोमपियस जन्नोवइयगणेत्तियजमकामणिअभिओग असण ४ पुप्फवत्येणं सकारेति सम्माणेति जाव पडिविसजेति, तते णं ताई वासुदेवपामोक्खाई बहुहिं जाव पडिगयाति(सूत्रं१२१) तते णं ते पंच पंडवा दोवतीए देवीए सद्धिं अंतो अंतेउरपरियाल सर्द्धि कल्लाकल्लिं वारंवारेणं ओरालाति भोगभोगाई जाव विहरति, तते णं से पंडू राया अन्नया कयाई पंचहिं पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवतीए देवीए यसद्धिं अंतोअंतेउरपरियाल सद्धिं संपरिवुडे सीहासणवरगते यावि विहरति, इमं चणं कच्छल्लणारए दंसणेणं अइभद्दए विणीए अंतो २ य कलुसहियए मज्झत्थोवत्थिए य अल्लीणसोमपियदंसणे सुरूवे अमइलसगलपरिहिए कालमियचम्मउत्तरासंगरइयवत्थे दण्डकमण्डलुहत्थे जडामउडदित्तसिरए जन्नोवइयगणेत्तियमुंजमेहलवागलधरे हत्थकयकच्छभीए पियगंधवे धरणिगोयरंप्पहाणे संवरणावरणओवयणउप्पयणिलेसणीसु य संकामणिअभिओगपण्णत्तिगमणीथंभणीसुय बहुसु विजाहरीसु विजासु विस्सुयजसे इहे रामस्स य केसवस्स य पज्जुन्नपईवसंबअनिरुद्धणिसढउम्मुयसारणगयसुमुहदुम्मुहातीण जायवाणं अद्भुट्ठाण कुमारकोडीणं हिययदइए संथवए कलहजुद्धको लाहलप्पिए भंडणाभिलासी बहुसु य समरसयसंपराएसु दंसणरए समंतओ कलहसदक्खिणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे दसारवरवीरपुरिसतिलोकबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवतीं एकमणिं गगणगमणदच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गामागरनगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणसंवाहसहस्समंडियं थिमियमेइणीतलं वसुहं ओलोइंतो रम्मं हथिणारं उवागए पंडरायभवणंसि अइवेगेण समो. Jain Education International For Personal & Private Use Only w.jainelibrary.org

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