Book Title: Ganitanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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3.४
टो-अज्ञप्ति
તિર્યકુ લોક : મહાનદી-લવણસમુદ્ર વર્ણન
સૂત્ર ૬૮૨-૬૮૪
१. गंगा, २. सिंधु, ३. रोहिता, ४. रोहितंसा, ५. हरी, (१) , (२)सिंधु, (3)रोडिता, (४)रोडितांशा, ६. हरिकता, ७. सीता, ८. सीतोदा, ९. नरकंता, (५), (5)२.न्ता, (७)शीता, (८)शातो.l, १०. नारिकता, ११. सुवण्णकूला, १२. रूप्पकूला, (८)नन्ता , (१०)नारीन्ता , (११)सुवासा,
१३. रत्ता, १४. रत्तवई । - सम. १४, सु. ८ (१२) २५41, (१३) २5ता, (१४) २७तवती. दसण्हं णईणं गंगा-सिंधुसु समत्ति
ગંગા અને સિંધુ નદીમાં દસ નદીઓનું મળવું: ६८२. जंबू-मंदरदाहिणेणं गंगा-सिंधुमहाणईओ दसमहाणईओ ६८२. सुद्धापना मे२पर्वतथी हक्षिामा भने सिंधु समति, तं जहा
મહાનદીઓમાં દસ મહાનદીઓ મળે છે, જેમકે१. जउणा, २ सरऊ, ३. आवी, ४. कोसी, ५. मही, (१) यमुना, (२) सरयु, (3) मावी, (४) ओशा, ६. सतदु, ७. वितत्था, ८. विभासा, ९. एरावती, (५)मडी.(G)शत६६, (७)वितत्था, (८)विमासा, १०. चंदभागा। - ठाणं १०, सु. ७१७ (१)
(८) शवती, (१०) यंद्रभागा. दसण्हं णईणं रत्ता-रत्तवइसु समत्ती
રક્તા અને રક્તવતી નદીમાં દસ નદીઓનું મળવું. ६८३. जंबू-मंदर उत्तरेणं रत्ता-रत्तवईमहाणईओ दसमहाणईओ 5८3. मुद्धीपमा भे२पर्वतनी उत्तरमा २४ता भने २तवती समापति, तं जहा
મહાનદીઓમાં દસ મહાનદીઓ મળે છે, જેમકે१. किण्हा, २. महा किण्हा, ३. नीला, ४. महा नीला, (१) , (२)महा ।, (3)नीसा, (४)महानीला, ५. महातीरा, ६. इन्दा, ७. इन्दसेणा, ८. सुसेणा, (५) महाती।, (5) इन्द्रा, (७) इन्द्रसेना, ९. वारिसेणा, १०. महाभागा ।
(८) सुसे।, (८) वारिसे।।, (१०) महामा. - ठाणं १०, सु. ७१७ (२) चउद्दसमहाणईणं लवणसमुद्देसु समत्तिवण्णओ यौ महानहीमोना लवासमुद्रमा भगवानुवान १-गंगामहाणईए लवणसमुद्दे समत्ति
(१) गं॥ महानहीन बासमुद्रमा मगj : १८४. तस्स णं गंगप्पवायकुण्डस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं ८४. गंगाप्रपातना क्षिा तो (२)थी गंगा
गंगामहाणई पवूढा एज्जेमाणी समाणी उत्तरड्ढ મહાનદી નીકળીને ઉત્તરાર્ધ ભરતક્ષેત્રમાં વહેતી વહેતી भरहवासं एज्जेमाणी, सत्तहिं सलिलासहस्से हिं
સાત હજાર નદીઓ પોતાનામાં મેળવે છે અને પછીથી आउरेमाणी-आउरेमाणी अहे खंडप्पवायगुहाए वेयड्ढ
ખંડપ્રપાત ગુફાની નીચે થઈને વૈતાય પર્વતને બે पव्वयं दलइत्ता दाहिणड्ढभरहवासं एज्जेमाणी
ભાગોમાં વિભક્ત કરતી દક્ષિણાર્ધ ભરતક્ષેત્રમાં વહેતીएज्जेमाणी, दाहिणड्ढभरहवासस्स बहुमज्झदेसभागं
વહેતી દક્ષિણાર્ધભરતક્ષેત્રના મધ્યમાં થઈને પૂર્વાભિમુખ गंता पुरत्थिमाभिमुही आवत्ता समाणी चोद्दसहिं
થતી એવી ચૌદહજાર નદીઓ સહિત જગતીની નીચે सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दालइत्ता पुरथिमेणं
થઈને પૂર્વી લવણસમુદ્રમાં મળે છે. लवणसमुदं समप्पइ। - जंबु. वक्ख. ४, सु. ९१ १. जम्बुद्दीवे दीवे सत्तमहाणईओ पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समति, तं जहा - (२) गंगा, (२) रोहिता, (३) हरी, (८) मीता,
(५) नरकंता, (६) सुवण्णकूला, (७) रत्ता । जम्बुद्दीव दीवे सत्तमहाणईओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समप्पंति, तं जहा - (१) सिन्धु, (२) रोहितंसा, (३) हरिकंता, (८) सीतोदा, (५) णारिकता, (६) रूप्पकूला, (७) रत्तवती ।
- ठाणं. ७, मु. ५५५ जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्म पव्वयस्म दाहिणेणं गंगामहानई पंचमहानईओ समति, तं जहा- (१) जणा, (0) सरऊ, (३) आवी, (४) कोमी, (५) मही। जम्बुमंदरस्स दाहिणणं सिन्धुमहाणई पंचमहाणईओ समति, तं जहा - (१) सतदु, (२) वितत्था, (३) विभामा, (४) एरावती, (५) चंदभागा।
- ठाणं. ५.उ.३.मु. ४७० जम्बुमंदरस्स उत्तरेणं रत्तामहाणई पंचमहाणईओ समति, तं जहा - (१) किण्हा, (२) महाकिण्हा, (३) नीला, (४) महानीला, (५) महातीरा।
जम्बूमंदरस्स उत्तरणं रत्तवई महाणई पंचमहाणईओ समप्यति, तं जहा - (१) इंदा, (0) इंदमेणा, (३) मुमेणा (6) वाग्मेिणा, Jain Education its) महाभागा।
- ठाणं ५, उ. ३, मु. ४७०
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