Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 418
________________ 398 स्वाभाविक स्वभाव होने पर भी उनमें सहायता लेने वाले परद्रव्यों की अपेक्षा से घटाकाश, पटाकाश आदि व्यवहार किया जाता है। ___ जीव में उपचरित स्वभाव नहीं मानने पर अर्थात् उसे सर्वथा अनुपचरित स्वभाववाला मानने पर उसमें पर व्यवसायिता नहीं बनेगी अर्थात् उस पर का ज्ञान नहीं होगा, परन्तु “स्वपरव्यवसायि ज्ञानवंत आत्मा" ऐसा कहा जाता है। क्योंकि स्वयं का निर्णय (स्वविषयत्व) करना यह आत्मा का स्वभाव है, परन्तु व्यवहारनय से इन्द्रियों के माध्यम से वह पर पदार्थों को भी जानता है। क्योंकि पर का निर्णय (परविषयत्व) पर की अपेक्षा रखकर प्रतीयमान होता है। इसलिए आत्मा के ज्ञानगुण में जो स्वव्यवसायित्व है, वह अनुपचरित है, परन्तु परव्यवसायित्व उपचरित है।151 उपचरित स्वभाव दो प्रकार का होता है - कर्मजनित उपचरित स्वभाव और स्वाभाविक उपचरित स्वभाव। पूर्वबद्ध कर्मों के उदय से होनेवाला स्वभाव कर्मजनित उपचरित स्वभाव कहलाता है। शरीर आदि पुद्गलों के सम्बन्ध से जीव को जो मूर्त और अचेतन कहा जाता है, वह शरीर –अंगोपांग आदि नाम कर्म के उदय के कारण होने से यह कर्मजनित उपचरित स्वभाव है। वस्तु के सहज स्वभाव से ही पर-पर्याय का उपचार अपने में करना स्वाभाविक उपचरितस्वभाव है। जैसे सिद्ध परमात्मा का पर के ज्ञाता रूप स्वभाव ।1152 सिद्ध परमात्मा लोकालोकवर्ती समस्त द्रव्यों और उनके अनंतानंत पर्यायों को जानते हैं। वे सभी द्रव्य सिद्ध परमात्मा से भिन्न होने पर भी सिद्ध परमात्मा के ज्ञान में प्रतिबिम्बित होते हैं। यह सिद्ध परमात्मा के ज्ञान का स्वभाव है, जो स्वभाविक उपचरित स्वभाव है। प्रत्येक द्रव्य के सामान्य और विशेष स्वभाव - जीव और पुद्गल द्रव्य में अस्ति, नास्ति आदि 11 सामान्य स्वभाव तथा चेतनता आदि दस विशेष स्वभाव पाये जाते हैं। इन दो द्रव्य में सभी सामान्य और 1151 ते उपचरितस्वभाव न मानिइं, स्वपरव्यवसायि ज्ञानवंत आत्मा किम कहि इं. ..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/10 का टब्बा 1152 ते उपचरितस्वभाव दो प्रकार छइं ....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/11 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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