Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 493
________________ 473 अपेक्षा से भेद नहीं होने पर भी संज्ञा, संख्या, लक्षण की अपेक्षा द्रव्यादि तीनों पदार्थ परस्पर भिन्न हैं। 1386 अन्यथा द्रव्य, गुण, पर्याय ऐसा भेद व्यवहार ही संभव नहीं होगा और ऐसी स्थिति में गुण-गुणी में से कोई एक ही रह पायेगा। यदि केवल गुणी (द्रव्य) ही रहता है तो वह गुणों के अभाव में निःस्वभावी होकर अस्तित्वहीन हो जायेगा तथा गुण भी गुणी के अभाव में निराधार होकर कहाँ आश्रय लेगा।1387 इसलिए द्रव्य मात्र गुण और पर्याय रूप नहीं है तथा गुण–पर्याय भी मात्र द्रव्य नहीं है।1388 जैनदर्शन सत्कार्यवाद को नहीं मानता है। कारण में कार्य पहले से ही विद्यमान है तो फिर उसकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? इसलिए कारण में कार्य पर्यायार्थिकनय से असत् है तथा कारण से भिन्न है। इसलिए कार्य उत्पन्न होता है। जैनदर्शन असत्कार्यवाद और सत्कार्यवाद के मध्य समन्वय प्रस्तुत करता है। द्रव्यार्थिकनय से कार्य कारण में रहता है और पर्यायार्थिकनय से कार्य कारण में नही रहता है। कारण में कार्य अव्यक्त रूप से होने से सत् है और व्यक्त नहीं होने से असत् है। बौद्धदर्शन - - बौद्धदर्शन क्षणिकवादी दर्शन है और अपने क्षणिकवाद के आधार पर भेदवाद को स्वीकार करता है। उसके अनुसार जगत एक प्रवाहमात्र है। उसमें प्रतिक्षण परिवर्तन घटित हो रहा है। इस परिवर्तनशील प्रवाह में एकत्व और नित्यता की कल्पना करना उसके अनुसार एक भ्रामक कल्पना है। अतः जैनदर्शन की भाषा में कहें तो बौद्धदर्शन के अनुसार कोई नित्य द्रव्य स्म वस्तु तत्त्व नहीं है। मात्र पर्यायें ही पर्यायें है। जैनदर्शन जिस द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा को स्वीकार 1386 संज्ञा, संख्या लक्षणयी पणि, भेद एहनो जाणी रे .. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/16 1387 यदि गुणा एव द्रव्याभावे निराधारत्वादभावः स्यात् ............. रा.वा 5/2/9/439 1388 तेषामेव गुणानां तैः प्रदेशैः विशिष्टा भिन्न् . प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, गा. 130 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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