Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 513
________________ 493 युक्त द्रव्य जीव है तथा ज्ञानादि गुणों से रहित द्रव्य अजीव है ऐसा प्रतिनियत व्यवहार ही संभव नहीं होगा। इसलिए अनादिकाल से स्वयंसिद्ध द्रव्यादि के परस्पर अभेद सम्बन्ध को स्वीकार करने पर ही ज्ञानादि गुणों और पर्यायों से अभिन्न द्रव्य जीव है तथा रूपादि गुण-पर्यायों से अभिन्न द्रव्य पुद्गल है ऐसा व्यवहार हो सकता है। अन्यथा छहों द्रव्यों की 'द्रव्य' ऐसी सामान्य संज्ञा ही रहेगी, किन्तु यह जीवद्रव्य है, यह पुद्गलद्रव्य है ऐसी विशेष संज्ञा नहीं रहेगी।1435 छहों द्रव्यों की विशेष संज्ञा अपने-अपने गुण पर्यायों के साथ अभिन्न सम्बन्ध के कारण ही है। जिस प्रकार रत्न (द्रव्य), रत्न की कान्ति (गुण) और ज्वरापहार शक्ति (पर्याय) इन तीनों में एकत्व परिमाण है, उसी प्रकार द्रव्य-गुण-पर्याय ऐसे भिन्न-भिन्न तीन नाम होने पर भी इन तीनों अर्थात् द्रव्य-गुण-पर्याय में एकत्व परिणाम है।1436 उदाहरण के लिए जीवद्रव्य, उसके ज्ञानादिक गुण, क्षयोपशमिक भावजन्य ज्ञान की हानि-वृद्धि रूप मतिज्ञान आदि पर्यायें तथा औदायिक भावजन्य नर-नारकादिरूप पर्याय में एकत्वपरिणाम है। इसलिए द्रव्यादि परस्पर कथंचित् अभिन्न है। कारण-कार्य में अभेद सम्बन्ध नहीं रहेगा : द्रव्य-गुण-पर्याय में परस्पर कथंचित् अभेद सम्बन्ध को अस्वीकृत करने पर कार्य की उत्पत्ति नहीं होगी, क्योंकि असत् वस्तु खरविषाण की तरह कदापि उत्पन्न नहीं होती है।1437 द्रव्य कारण है तथा पर्याय प्रगट होने से कार्य है। इन कारण-कार्य में अभेद सम्बन्ध नहीं मानने का अर्थ तो यह हुआ कि मृत्तिका आदि कारण में घटादि कार्य असत् है। परन्तु संसार में असत् कार्य की उत्पत्ति खरविषाण 1435 ज्ञानादिक गुण पर्यायथी अभिन्न द्रव्य ते जीवद्रव्य, रूपादिक-गुणपर्यायथी अभिन्न ते अजीवद्रव्य नही तो सामान्यथी विशेष संज्ञा न थाइ .... ........ - वही गा. 3/6 का टब्बा 1436 जिम रत्न 1 कान्ति 2, ज्वरापहराशक्ति 3 पर्यायनइं ए 3 नई एकज परिणाम छ। तिम द्रव्य-गुण-पर्यायनइं इम जाणवू ............................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 3/6 का टब्बा 1437 जो अभेद नहीं एहनोजी, तो कारय किम होइ ? अछती वस्तु न नीपजइजी, शशविषाण परि जोइ रे।। ............. वही गा. 3/7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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