Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 516
________________ 496 अभेद भी है। इसी प्रकार भेदाभेद को भी एक ही स्थान पर अपेक्षा विशेष से मानने पर कोई विरोध नहीं आता है।1445 मिट्टी का घट जब तक पकता नहीं है तब तक श्यामवर्णवाला होता है तथा पकने के बाद रक्तवर्णवाला हो जाता है। श्यामावस्थावाला घट कच्चा होने से जलाधार आदि कार्य करने में असमर्थ है, जबकि रक्तावस्था वाला घट परिपक्व होने से जलाधार आदि कार्य कर सकता है। श्यामवस्था और रक्तावस्था की अपेक्षा से घट भिन्न है। परन्तु अवस्थाओं के बदलने पर भी घटत्व नहीं बदलता है। दोनों ही अवस्थाओं में वही घटत्व रहने से घट अभिन्न भी है। 446 बाल्यवस्था, युवावस्था आदि अवस्थाओं की अपेक्षा से व्यक्ति में भेद है। परन्तु देवदत्त नामक उस मनुष्य पर्याय की अपेक्षा से उसमें भेद नहीं भी है। 447 कोई भी व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक 'यह वही पुरूष है, 'यह वही पुरूष है' ऐसा कहा जाता है। यह अभेद है। बाल्यवस्था, तरूणावस्था, वृद्धावस्था रूप जितनी भी पर्यायें है, वह भेद है।1448 इस प्रकार भेदाभेद को एक साथ और एक ही स्थान पर रहने में कोई विरोध नहीं आता है। जहाँ भेद होता है वहां अपेक्षाभेद से अभेद और जहाँ अभेद होता है वहाँ अपेक्षाभेद से भेद अवश्य रहता है। प्राचीन नैयायिकों का कहना है – भेद व्याप्यवृत्ति होने से जहाँ भेद है वहाँ अभेद हो ही नहीं सकता है। भेद अपने अधिकरण में संपूर्ण रूप से व्याप्त होकर रहने से अभेद को नहीं रहने देता है।1449 1445 जिम-रूप-रसादिकनो एकाश्रयवृत्तित्वानुभवथी विरोध न कहिइं, तिम भेदाभेदनो पण जाणवो, - वही, गा. 4/3 का टब्बा 1446 श्यामभाव जे घट छइ पहिला, पछइ भिन्न रे रातो रे। ............ – वही, गा. 4/4 1447 बालभाव जे प्राणी दीसइ, तरूण भाव ते न्यारो रे। देवदत्त भावइं ते एक ज, अविरोधइ निरधारो रे।। ..... - वही गा. 4/5 1448 सन्मतिप्रकरण, गा. 1/32 1449 भेद होइ, तिहां अभेद न होइ ज, भेद व्याप्यवृत्ति छइ, ते माटि........ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/6 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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