Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 524
________________ सम्बन्ध को लेकर रचा गया कोई गम्भीर एवं स्वतंत्र ग्रन्थ हमारे दृष्टि में नहीं आता है । यद्यपि, आदि आगमों में द्रव्य, गुण, पर्याय और उनके पारस्परिक सम्बन्धों को लेकर भगवतीसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र आदि आगमों में किंचित् विवेचन उपलब्ध है, किन्तु वहाँ नय आदि के आधार पर गंभीर तार्किक विवेचन का प्रायः अभाव ही है । दिगम्बर परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द का पंचास्तिकाय सार तथा आचार्य नेमीचन्द्र का 'द्रव्यसंग्रह' तत्त्वमीमांसा की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माने जा सकते हैं । किन्तु ये ग्रन्थ भी अत्यधिक छोटा है। पंचास्तिकायसार में मात्र 173 गाथाओं, द्रव्यसंग्रह में मात्र 37 गाथाओं में संपूर्ण विषयों का विवेचन कर दिया गया है। जबकि उपाध्याय यशोविजयजी ने लगभग 17 ढालों और 284 गाथाओं में द्रव्य, गुण और पर्याय के सम्बन्ध में एक स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में इतना विशाल और महत्वपूर्ण ग्रन्थ हमारी जानकारी में यही था । 504 यद्यपि उपाध्याय यशोविजयजी ने जैनदर्शन के क्षेत्र में नव्य न्याय की पद्यति को सर्वप्रथम स्थान दिया है, फिर भी इस मूलग्रन्थ में उनके नव्य न्याय शैली का दर्शन नहीं होता है। किन्तु इसकी स्वोपज्ञ टीका में मात्र कहीं-कहीं क्वचित् रूप में नव्य न्याय शैली का दर्शन होता है। दूसरे इस ग्रन्थ के अध्ययन में हमें यह लगा कि जहां एक ओर उन्होंने अपने पूर्ववर्ती श्वेताम्बर - दिगम्बर आचार्यों के चिन्तन को स्थान दिया वहीं दूसरी ओर जहाँ उन्हें आवश्यक लगा वहाँ उनकी समीक्षा भी की है । इस प्रकार समन्वय और समीक्षा की दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्वपूर्ण बन गया है । यद्यपि मूल ग्रन्थ द्रव्य, गुण, पर्याय और उनके सम्बन्धों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । परन्तु इसमें नयों के विवेचन एवं विभाजन की जो शैली अपनाई गई है, वह भी महत्वपूर्ण है। श्वेताम्बर परम्परा में उपाध्याय यशोविजयजी ही एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने इस ग्रन्थ में नयों की गंभीर चर्चा की है । यद्यपि नयप्रवेश, नयरहस्य, अनेकान्त व्यवस्था आदि उनके नयों के सम्बन्ध में अनेक गंभीर ग्रन्थ हैं, फिर भी इस ग्रन्थ में जन-साधारण को द्रव्य गुण एवं पर्याय का स्वरूप एवं सहसम्बन्ध बताने के लिए उदाहरण सहित नयों की जो गंभीर चर्चा हुई है, वह अति महत्वपूर्ण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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