Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 540
________________ अभाव हो जायेगा । द्रव्य का अभाव होने से आधार - आधेय सम्बन्ध का भी अभाव होकर गुण और पर्याय निराधार हो जायेंगे। जहां द्रव्य एक ओर एक स्वभाववाला है वहीं अनेक गुण–पर्यायों में अन्वय सम्बन्ध से रहने के कारण अनेक स्वभाववाला भी है। उपाध्याय यशोविजयजी ने ग्यारह सामान्य स्वभाव और कुछ विशेष स्वभावों की चर्चा की है, जिसे हमने इस चतुर्थ अध्याय में विस्तार से चर्चा की है। स्वभाव-स्वभाव, विभाव स्वभाव, उपचरित और अनुपचरित स्वभाव, अस्ति और नास्ति स्वभाव, एक और अनेक स्वभाव, भेद स्वभाव और अभेद स्वभाव, भव्यत्व स्वभाव और अभव्यत्व स्वभाव, चेतन स्वभाव और अचेतन स्वभाव, मूर्त स्वभाव और अमूर्तस्वभाव आदि अनेक प्रकारों के स्वभाव की चर्चा की है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्याय गुण और स्वभाव के सम्बन्ध को भी स्पष्ट करता है । विस्तारभय से हमने यहां सार रूप ही प्रस्तुत किया है। 520 प्रस्तुत शोधग्रन्थ का पंचम अध्याय पर्याय से सम्बन्धित है । द्रव्य में रहनेवाले सहभावी धर्म गुण और क्रमभावी धर्म पर्याय कहलाते हैं। जिस प्रकार जलती हुई दीपशिखा में तेल प्रतिक्षण जलने पर भी दीपशिक्षा यथावत रहती है, उसी प्रकार द्रव्य के प्रतिसमय परिणमनशील होते हुए भी द्रव्यत्व यथावत रहता है । द्रव्य का यह परिणमन ही पर्याय है। उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में परिणमन को ही पर्याय कहा है जिसकी पुष्टि अनेक आचार्यों ने की है। जिस प्रकार द्रव्य और गुण में भेदाभेद सम्बन्ध है, उसी प्रकार द्रव्य और पर्याय में भी भेदाभेद सम्बन्ध हैं। वर्तमान समयवर्ती पर्याय द्रव्य में अभेद रूप से रही हुई है, वहां भूतकालीन और भविष्यकालीन पर्याय द्रव्य से पृथक् होती है। पर्याय की विशेषता को बताते हुए उपाध्याय यशोविजयजी ने उसे क्रमवर्ती बताया है । द्रव्य और गुण की अनंत पर्याय होती हैं, परन्तु सभी पर्याय एक साथ नहीं होती है । एक पर्याय के नाश होने पर ही दूसरी पर्याय उत्पन्न होती है। इसलिए यह कहा जाता है कि जहां गुण सहभावी धर्म है, वहां पर्याय क्रमभाव पर्याय है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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