Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 542
________________ 522 इनका पारस्परिक सम्बन्ध की चर्चा नय के आधार पर विशिष्ट होने से इस षष्टम् अध्याय में उसकी विस्तृत चर्चा की है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का षष्टम् अध्याय द्रव्य, गुण एवं पर्याय के पारस्परिक सम्बन्ध की विवेचना करता है। इसमें हमनें एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से, द्रव्य का गुण से, गुण का दूसरे गुणों से तथा द्रव्य और गुण का पर्याय से क्या सम्बन्ध है ? इसे स्पष्ट करने का प्रयास किया है। उपाध्याय यशोविजयजी अनेकान्तवाद के पोषक दार्शनिक रहे। अतः उन्होंने इन सम्बन्धों को सापेक्ष रूप से अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है। जहां तक एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से सम्बन्ध का प्रश्न है, जैनदर्शन की यह मान्यता है कि प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र और स्वप्रतिष्ठित है। निश्चयनय की दृष्टि से एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। किन्तु दूसरी ओर छहों द्रव्यों का अवगाहन क्षेत्र एक होने से ये छहों द्रव्य एकक्षेत्रावगाही हैं। अतः यह कहना होगा कि सभी द्रव्य स्वतंत्र होकर भी एकक्षेत्रावगाही होने से व्यावहारिक दृष्टि से परस्पर सम्बन्धित है। दूसरी ओर छहों द्रव्य को एक दूसरे का उपकारी भी कहा गया है। जैसे धर्मद्रव्य जीव और पुद्गल के गति में सहायक है तो अधर्मद्रव्य उनकी स्थिति में सहायक है। आकाश शेष पांचों द्रव्यों को स्थान देकर उनका उपकार करता है। उसी प्रकार पुद्गल जीव के शरीर संरचना आदि में सहायक बनता है। कालद्रव्य वर्तना लक्षणवाला होने से सभी द्रव्यों के परिणमन में सहायक बनता है। जीव यद्यपि अन्य द्रव्यों का कोई उपकार तो नहीं करता है, फिर भी उनसे उपकृत अवश्य है। दूसरा जीवों का लक्षण ‘परस्परग्रहो जीवानाम' माना गया है। इस आधार पर छहों द्रव्य स्वतंत्र होकर भी परस्पर उपकारी और उपकृत भाव से रहे हुए हैं। अतः उनमें कथंचित् भिन्नता और कथंचित् अभिन्नता है। उपाध्याय यशोविजयजी के अनेकान्त दृष्टि इस तथ्य की समर्थक प्रतीत होती है। जहां तक द्रव्य और गुण के पारस्परिक सम्बन्धों का प्रश्न है गुणों को दो भागों में विभाजित किया गया है –सामान्यगुण और विशेषगुण। सामान्यगुण सभी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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