Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 543
________________ 523 द्रव्यों में समान रूप से पाये जाते हैं, जबकि विशेषगुण किसी विशेष द्रव्य की विशिष्टता का वाचक होते हैं। किन्तु जहां तक इनके पारस्परिक सम्बन्धों का प्रश्न है, कोई भी द्रव्य गुण से रहित नहीं होता है। क्योंकि गुणों को द्रव्य का सहभावी माना गया है। अतः गुण और द्रव्य परस्पर सम्बन्धित हैं। गुणों से पृथक द्रव्य का और द्रव्य से पृथक् गुणों का कोई अस्तित्व नहीं है। अतः द्रव्य और गुण में अभेद सम्बन्ध है। फिर भी जहां तक विशेष गुणों का प्रश्न है, वे किसी द्रव्य में भाव रूप से तो अन्य किसी द्रव्य में अभावरूप होते हैं। किन्हीं द्रव्यों में किन्हीं विशेष गुणों का अभाव द्रव्य और गुणों के भेद को सूचित करता है। यही कारण है कि उपाध्याय यशोविजयजी ने एक ओर द्रव्य और गुण में आश्रय-आश्रयी सम्बन्ध मानकर भेद सम्बन्ध को माना है तो दूसरी ओर द्रव्य और गुण में परस्पर भेद सम्बन्ध को भी स्वीकार किया है। विशेष गुणों का किसी द्रव्य में अन्वय और किसी द्रव्य में व्यतिरेक पाया जाता है। ये विशेष गुण एक दूसरे द्रव्य के भेदक हैं। इस अपेक्षा से भेद सम्बन्ध भी सिद्ध होता है। उपाध्याय यशोविजयजी यह मानते हैं कि द्रव्य और गुण में भी भेदाभेद सम्बन्ध है। उनके अनुसार द्रव्य समुदाय है, गुण समुदायी है। द्रव्य अंश है, गुण अंशी है। द्रव्य आधार है और गुण आधेय है। पुनः जो गुण है वह द्रव्य नहीं है और जो द्रव्य है वह गुण नहीं है। इस प्रकार द्रव्य और गुण के भेद सम्बन्ध को स्पष्ट किया है। वाचक उमास्वाति ने 'गुणपर्यायवत् द्रव्यम्' कहकर कथंचित् भिन्नता और कथंचित् अभिन्नता को प्रतिपादित किया है। जहां तक गुणों का पारस्परिक सम्बन्ध है, प्रत्येक गुण स्वतंत्र है। उमास्वाति ने निर्गुणा गुणाः कहकर यह स्पष्ट किया है कि गुण एक दूसरे से स्वतंत्र हैं। फिर भी एक द्रव्याश्रित होने से कुछ सम्बन्ध तो अवश्य हैं। प्रस्तुत अध्याय में हमने यह भी स्पष्ट किया है कि जहां जैनदर्शन द्रव्य और गुण के पारस्परिक सम्बन्ध को लेकर भेदाभेदवादी है वहां नैयायिक एकान्त भेदवादी हैं। जहां तक द्रव्य और पर्यायों के सम्बन्ध का प्रश्न है उपाध्याय यशोविजयजी यह मानते हैं कि कोई भी द्रव्य पर्याय से रहित और कोई भी पर्याय द्रव्य से रहित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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