Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 538
________________ सांख्य एवं योगदर्शन बंधन और मुक्ति को मानकर मुक्ति का मार्ग भी प्रस्तुत करते हैं । 518 जैनदर्शन और मीमांसा यद्यपि जैनदर्शन और मीमांसा दोनों ही सत्ता को परिणामीनित्य मानते हैं, फिर भी मीमांसा आत्मा की नित्य मुक्ति को नहीं मानता है । वह स्वर्ग प्राप्ति तक ही अपने को सीमित रखता है। उसका कहना है कि यदि मुक्ति नित्य है तो फिर आत्मा का परिणामी नित्यत्व खण्डित होगा । प्रस्तुत शोध ग्रन्थ का चतुर्थ अध्याय गुण की अवधारणा से सम्बन्धित है। जहां न्याय-वैशेषिकदर्शन द्रव्य से गुणों को पृथक् मानता है, वहां जैनदर्शन द्रव्य को गुणपर्याय युक्त कहकर उनमें भेदाभेद की कल्पना करता है । उपाध्याय यशोविजयजी ने अपनी कृति 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में गुण क्या है, कितने प्रकार का है ? उनका द्रव्य और पर्याय से क्या सम्बन्ध है ? किस द्रव्य के कौन-कौनसे द्रव्य हैं ? गुण और स्वभाव में क्या अन्तर है ? आदि प्रश्नों को उठाकर गंभीर चर्चा की है । यद्यपि तत्त्वमीमांसा की दृष्टि से गुण को द्रव्य का लक्षण बताया गया है। तथापि जैन वाङ्मय में गुण शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में हुआ है । आचारांग में वह इन्द्रियों के भोग के विषय के रूप में तो नीति सम्बन्धी चर्चा में सद्गुण के रूप में तथा तत्त्वमीमांसीय दृष्टि से द्रव्य के आश्रित रहने वाले धर्म या शक्ति के रूप में प्रयुक्त हुआ है। तत्त्वार्थसूत्र आदि में कहीं-कहीं गुण शब्द अंश या अनुपात के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। फिर भी जहां तक जैन तत्त्वमीमांसा का प्रश्न है वहां गुण द्रव्य के स्वभाव, शक्ति या धर्म के रूप में ही प्रयुक्त हुआ है । उपाध्याय यशोविजयजी ने अपने ‘द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में द्रव्य के सहवर्ती धर्मों को गुण कहा है और उनके सामान्य और विशेष ऐसे दो विभाग किये हैं । उपाध्याय यशोविजयजी के पूर्व जैनदार्शनिकों ने द्रव्य के आश्रित रहनेवाले विशिष्ट धर्मों को गुण कहा है वहीं उन्हें एक द्रव्य के दूसरे द्रव्य से पृथक् करनेवालों को भी गुण कहा है। वस्तुतः द्रव्य के सहभावी तत्त्व ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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