Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 518
________________ 498 उल्लेख होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि धर्मी में भी अभेद न होकर भेद ही होता है। जहाँ धर्म में भेद होता है वहाँ धर्मी में भी भेद अवश्य होता है। यह प्रत्यक्ष सिद्ध इस प्रकार जहाँ नैयायिक आदि एकान्त भेदवादी घट-पट, जड़-चेतन में एकान्त भेद को स्वीकार करते हैं वहाँ जैनदर्शन घट-पट आदि में भी भेदाभेद को ही मानता है।452 दुन्यवी लोगों को जीव-अजीव में अर्थात् घट-पट में, गाय-घोड़े में हाथी-चींटी आदि सर्वत्र एकान्त भिन्नता ही दृष्टिगोचर होती है परन्तु रूपान्तर से अर्थात् द्रव्यत्व, पदार्थत्व आदि की अपेक्षा से जीव-अजीव में भी अभिन्नता है।1453 जड़त्व-चेतनत्व धर्म की अपेक्षा से जीव और अजीव में भेद होने पर भी दोनों जीव-अजीव में पाये जाने वाले द्रव्यत्व, पदार्थत्व, की अपेक्षा से अभेद भी है। क्योंकि जीव भी द्रव्य और पदार्थ है तथा अजीव भी द्रव्य और पदार्थ है। इसी प्रकार घट-पट में पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से, गाय-घोड़े में पशुत्व की अपेक्षा से, हाथी-चींटी में जीवत्व की अपेक्षा से अभेद है। घट अपने अवान्तर पर्यायों श्यामत्व और रक्तत्व की अपेक्षा से भिन्न है और पर्यायों को गौण कर देने पर एक धर्मी की अपेक्षा से अभिन्न भी है। संक्षेप में प्रत्येक वस्तु सामान्य स्वरूप की विवक्षा करने पर अभेदरूप और विशेषस्वरूप की विवक्षा करने पर भेद रूप प्रतीत होती है। इसलिए भेद व्याप्यवृत्ति नहीं है, अपितु भेदाभेद ही सर्वत्र व्यापक है। 454 पदार्थों के मध्य केवल भेद प्रतीत होने पर भी रूपान्तर (अन्य स्वरूप की अपेक्षा) से उनमें अभेद भी अवश्यमेव होता है तथा केवल अभेद प्रतीत होने पर भी रूपान्तर से उनमें भेद भी अवश्यमेव होता है।1455 जैसे स्थास-कोश-कुशूल-घट आदि में भिन्न-भिन्न आकृतियों (पर्यायों) की अपेक्षा से भेद है। परन्तु मृद्रव्य से 1452 भेदाभेद तिहां पणि कहतां, विजय जइन मत पावइ .............. वही, गा. 4/7 पूर्वार्ध 1453 भिन्न रूप जे जीवाजीवादिक तेहमां, रूपान्तर द्रव्यत्व पदार्थत्वादिक, तेहथी जगमांहि अभेद पणि आवइ ......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/7 का टब्बा 1454 एटलइं-भेदाभेदनइं सर्वत्र व्यापकपणुं कहिउं ... .......... वही, गा. 4/7 का टब्बा 1455 जेहनो भेद अभेद ज तेहनो, रूपान्तर संयुतनो रे। .......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/8 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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