Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

View full book text
Previous | Next

Page 520
________________ 500 ने भी प्रस्तुत रास में द्रव्य-गुण-पर्याय के परस्पर भेदाभेद सम्बन्ध को सप्तभंगी के आधार पर निम्न रूप से स्पष्ट किया है : 1. स्याद्भिन्नमेव : पर्यायार्थिकनय की प्रधानता से द्रव्य से गुण–पर्याय और गुण–पर्याय से द्रव्य कथंचित् भिन्न है।1457 जैसे- जो गुण–पर्यायों का आधार है, वह द्रव्य है तथा जो द्रव्य में आधेय रूप से रहते हैं, वे गुण-पर्याय हैं। द्रव्य का सहभावी धर्म गुण और क्रमभावी धर्म पर्याय कहलाते हैं। इस प्रकार लक्षण, संख्या, संज्ञा, आधारआधेयभाव और इन्द्रियग्राह्यता आदि से द्रव्य और गुण–पर्याय में भेद है। साथ ही सहभावित्व और क्रमभावित्व की अपेक्षा से गुण और पर्याय में भेद है। 2. स्याद् अभिन्नमेव : द्रव्यार्थिकनय की प्रधानता करने पर द्रव्य से गुण–पर्यायों और गुण-पर्यायों से द्रव्य कथंचित् अभिन्न है।1458 जैसे सर्प की अवस्था विशेष है उत्फणा और विफणा और सर्प अपनी अवस्थाओं से भिन्न नहीं है। उसी प्रकार गुण और पर्यायें द्रव्य से भिन्न स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है, अपितु द्रव्य का ही आविर्भाव और तिरोभाव स्वरूप मात्र 3. स्याद् भिन्नाभिन्नमेव : क्रमशः द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनय की अर्पणा करने पर द्रव्य से गुण-पर्याय और गुण–पर्याय से द्रव्य कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न दोनों 1457 पर्यायार्थनयथी सर्व वस्तु द्रव्यगुणपर्याय, लक्षणइं कथंचिद् भिन्न ज छइ - द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/10 का टब्बा 1458 द्रव्यार्थनयथी कथंचिद् अभिन्न ज छइ ......... - वही, गा, 4/10 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551