Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

View full book text
Previous | Next

Page 453
________________ 433 जो पर्यायें परनिमित्त से षट्स्थान हानिवृद्धि रूप उन गुणों के लक्षणों के विरूद्ध परिणमित होती हैं, वे विभाव अर्थपर्याय हैं। 1255 आलापद्धति में जीव के विभाव अर्थपर्याय के छह भेद बताये हैं - मिथ्यात्व, कषाय, राग, द्वेष, पुण्य और पाप रूप अध्यवसान |1256 पंचास्तिकाय की टीका में जीव में कषायों की षट्स्थान हानि-वृद्धि के परिणामस्वरूप होने वाले शुभाशुभ लेश्याओं के स्थान को अशुद्ध अर्थपर्याय कहा है।1257 पुदगलद्रव्य की आठ प्रकार की पर्यायः - 1. शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय : एक शुद्ध परमाणु पुद्गलास्तिकाय की शुद्ध द्रव्य व्यंजन पर्याय है।1258 परमाणुरूप पर्याय पूर्णतः परनिरपेक्ष है। परमाणु दो-चार परमाणुओं के संयोगजन्य स्कन्धरूप कृत्रिम द्रव्य नहीं है, अपितु स्वतन्त्र द्रव्य है। स्कन्धों का उत्पाद और नाश होता है। परन्तु परमाणुओं का सामान्यतया उत्पाद और नाश नहीं होता है। परमाणुरूप यह पर्याय परद्रव्य के संयोगजन्य भी नहीं है। इसलिए पुद्गलद्रव्य की शुद्ध द्रव्य व्यंजनपर्याय है। पुद्गल द्रव्य का अविभाज्य और अन्तिम अंश अर्थात् जिसका पुनः विभाग नहीं होता है, ऐसा परमाणु ही पुद्गल की शुद्धपर्याय है।1259 परमाणु का आदि, मध्य और अन्त स्वयं परमाणु ही है और वह इन्द्रिय गोचर नहीं 1255 आलापपद्धति विवेचन,- पं.भुवनेशकुमार शास्त्री, पृ. 14 1256 विभाव अर्थपर्यायः षड्विधाः । ... ......... आलापपद्धति, सू. 18 1257 अशुद्ध अर्थपर्यायाः जीवस्य षट्स्थान गत कषाय हानि-वृद्धि-विशुद्धि संक्लेशरूप-शुभ-अशुभलेश्यास्थानेषु ज्ञातव्याः । ...................... पंचास्तिकाय, गा. 16 की टीका 1258 पुद्गलद्रव्यनो शुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय, अणु क परमाणुओ जाणवो, ते परमाणुनो कहिइं नाश नहीं, ते भणि ................ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/8 का टब्बा 1259 अविभागी पुद्गल परमाणुः स्वभावद्रव्यः व्यंजनपर्याय ............ आलापपद्धति, सू. 26 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551