Book Title: Dravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Author(s): Priyasnehanjanashreeji
Publisher: Priyasnehanjanashreeji

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Page 433
________________ अन्य–अन्य रूप होने से पर्याय को व्यतिरेकी कहा जाता है। संक्षेप में यह पर्याय 'वह नहीं है, ऐसी बुद्धि होने से व्यतिरेकी है । 1189 उत्पाद - व्ययरूप और कथंचित् ध्रौव्यात्मक : उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ये तीनों पर्याय के भेद हैं न कि सत् के । परिणमनशील सत् की जो नवीन अवस्था है, वह उत्पाद है तथा उसी सत् की पूर्व अवस्था का नाश, व्यय कहलाता है। इन सभी परिणामों में एकप्रवाहपना होने से प्रत्येक परिणाम उत्पाद - विनाश से रहित एकरूप या ध्रुव रहता है । ध्रुव भी सर्वांश रूप न होकर एक अंश रूप होने से पर्याय है। अतः पर्याय का लक्षण उत्पाद-व्यय और कथंचित् ध्रौव्यात्मक कहा है। 1190 1191 यद्यपि आचरांगसूत्र'' में भी पर्याय शब्द प्रयुक्त हुआ, किन्तु आगमों में पर्याय की सर्वप्रथम परिभाषा उत्तराध्ययनसूत्र में प्राप्त होती है। इस सूत्र के अनुसार जो द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित रहते हैं, वे पर्यायें हैं । 1192 क्योंकि द्रव्य के आश्रयभूत गुणों की हानि - वृद्धि या रूपान्तरता ही पर्याय है । इसलिए पर्याय उभयाश्रित हैं । सुवर्ण द्रव्य है, सुवर्ण के रूप - रसादि गुण है और कुंडल हार आदि पर्याय हैं। कुंडल, हार आदि आकार स्वरूप पर्याय सुवर्ण के आश्रित तो रहते हैं, किन्तु सुवर्ण द्रव्य में रहे हुए रूप, रसादि गुण भी उस आकार रूप परिणमित होने से पर्याय गुणों के आश्रित भी होते हैं । ' वस्तुतः द्रव्य और गुण की पृथक् सत्ता नहीं है। सामान्य और विशेष गुणों से भिन्न द्रव्य की कोई सत्ता नहीं है। अतः गुणों का परिणमन या रूपान्तरण द्रव्य का भी परिणमन और रूपान्तरण है। इसी प्रकार द्रव्य क परिणमन 1193 1189 पंचाध्यायी, 1/152 1190 वही, 1/200 से 203 1191 जे पज्जवज्जायसत्थस्स खेयण्णे से असत्यस्स खेयन्ने 1192 लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्स्यिा भवे । 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2 - पं. धीरजलाल डाह्यालाल भाई, पृ. 653 1193 Jain Education International 413 आचारांगसूत्र, 3/1/140 For Personal & Private Use Only उत्तराध्ययनसूत्र, 28/6 www.jainelibrary.org

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