Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 11 Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ (७) दिगंबर जैन । नसीराबाद-में ब्र० चांदमलजीके प्रय. सर सेठ हुकमचंदजीको म्हैसुरमें त्नसे सेठ लक्ष्मीचंदजीने आषाढ सुदी ५ को मानपत्र-श्रीमान सेठहुकमचंदजी जैनबद्रीकी उदासीनाश्रम अपने खर्चसे खोलदिया है व खुद यात्राको जाते हुए मैसुर गए थे तब वहांके भी इसी आश्रममें रहकर धर्मध्यान करते हैं। भाइयोंने जो मानपत्र दिया था वह यह हैઇડર-માં જેન યંગ મેન્સ એસોસીએશન नकल मानपत्र । તરફથી સભા થઈને લાલા લજપતરાયજીએ પોતે ____आपकी दानशीलता धर्मबुद्धि सदाचार व्यापाબનાવેલા ભારત ઇતિહાસમાં જનધર્મ પર જે माक्षे५ ४ा छ, तना विशष वामां आव्यों स्नैपुण्य आदि गुणोंको सुनकर हम लोगोंको भने में पुर४ सुधारवाने भाट वासाने प्रार्थना बहुत दिनोंसे श्रीमानका दर्शन करनेकी उत्कंठा કરનારો ઠરાવ પાસ હતો. थी। भाज आपने यहां पदार्पण किया है इसलिये ___ मामुल क्षेत्र-५२ यात्रिमानी मा माछी हमलोग आके दिनको सुदिन समझते हैं। आप હોવાથી આવક કરતાં ખરચ વધુ થાય છે. તેથી भुन म जारी भुनान पर्थनी टी माटे इंदोरमें महाविद्यालय, धर्मशाला, औषधालय, शुरामा अभए । २खा ने तेभने उदासीनाश्रम, कंचनबाई श्राविकाश्रम, वोडिंग मेरा प्र-avri 33 आभमाथा ३. ७७९नी आदि संस्थायें खोल करके जनसमाजको बडा મદદ મળી છે. ક્ષમાવણીના કાર્ડ-ગુજરાતી ભાષામાં બાર उपकार किया है। और भी समाजोपयोगी माने से लेथे भात्री सुन भ७, अनेक कार्योके लिये श्रीमानने कई लाख रुपया । महि२ सुखासाडी, भुने anाय खर्च किया है । जैन समाजमें आपसरीखे दानમળી શકે છે. समां शु-नामन ने सेम या अमां शूर मिलना बहुत दुर्लभ है। हमको गर्व है छायो छ, तमा नये भुषण संधारे। ।। सेवा. कि आप से नररत्न हमारी जैन समाजमें है। " था५२ मा भनेक्षा पयमांसमोरनास आज हम हमारा सौभाग्य मानते हैं कि आप २४ छ।४। पछी शे तरी थुटाया डdi." सरीखे सधर्मी धर्मात्मा पुरुषका सत्कार करनेका તેને બદલે દરેક ભાઈયોએ શેઠ તરીકે ર૦ ગગहास की यह नभ्या बता' मेम पांय. मौका हमको मिला है । हमारी सेवा में जो कुछ युनीसास पाय धी. त्रुटि होवे उसके लिये हम क्षमाप्रार्थी है। यह एक क्षत्रीने सप्त व्यसनका त्याग भी प्रार्थना करते है कि यहां पर हरसाल किया- ठाकुर रामपालसिंहजी (आगरा)को हमने .दशहरेमें होनेवाली मैसुर प्रांतीय दिगंबर जैन जंगल में बंदूक लिये शिकार खेलने जाते देखकर समाधिवेशनमें सभापतिस्थानको सुशोभित कर आपको जंगल में एक घंटा समझाया और दूरसे नेके द्वारा और एकवार अवश्य आप दर्शन एक हिरनीके बच्चको भयसे कड़खडाते भागते देनेकी रुपा करें। दिखाकर हिंसाके त्यागको कहा और सप्त अंतमें हम श्री वीतराग भगवानसे प्रार्थना व्यसनका स्वरूप समझाया जिससे जमनानीमें करते हैं कि आप दीर्घायुरारोग्य भाग्यशाली खड़े होकर उसने यावजन्मको सप्तव्यसनका होकर संतुष्ट रहे । मैसुर दि. जैनसमान । त्याग किया-बाबूराम मंत्री जीवदया-अहारन । ता. २६-७-२३Page Navigation
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