Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ (२७) दिगंबर जैन । मकवायु सुखद है, मोजनादि व्यय मी कम जीव-दया। पड़ता है, उक्त दोनों प्रांतोंका केन्द्र मी है, . व्यापारी स्थान है इत्यादि पुमीते हैं । इसके (एक अंग्रेजी पोइमका अनुवाद ): सिवाय यहां १ जैन पाठशाला कई वर्षोंसे सुचारुरीत्या चल मी रही है। धर्मशालाका मकान शीघ्र शीघ्र चल करके हे प्यारे ! मी हालमें कार्य चलाने योग्य तेवार है। केवल ___उस कीड़ेको मत कुचलो। एक या दो अध्यापकों और कुछ छात्रवृत्तियोंकी तुच्छ समझते हो तुम जिलको, आवश्यकता है तो इसका प्रबन्ध होते ही कार्य . वो मी है इक जीव महो॥ प्रारम्भ हो जायमा, आशा है कि आप लोग इस अपीलपर ध्यान देकर और अपने बाल- जो मालिक तप जीव मात्रका, कोंकी पुकारको सुनकर इस छोटीसी मांगको __ जिसने तुम्हें बनाया है। पूरी करेंगे। अर्थात् शीघ्र ही इस स्थानमें १ उस बेचारे कीड़े पर मी, . "सन्मति शिक्षा सदन" खोलकर अपनी उदा दयाभाव दरसाया है। रता प्रगट करेंगे । अथवा अपना कर्तव्य ही पालन करेंगे। सुरज, चांद, सितारे सबको, कर्तव्य अरु निन देशकी, . किंतु किसीको खास नहीं । अवमत दशाको देखकर । जैसी लुमको फैलाई है, . ? जीतव्य अरु निन द्रव्यको, .. . वैसी उसको घास जमीं ॥ [जमीन] चपला समा चल लेखकर ॥. . ... (४) खोडकर "शिक्षा सदन", खुश होने दो, लैने दो तुम, अब ज्ञान उन्नति कीजिये। तनक जिशी खुशी उसे । अथवा विचारे पाठकों को, हायः जान जो दे नहिं सकते, . - अपद रहने दीजिये ॥ क्यों फिर लेते 'प्रीय' असे ॥ : सोलहकारण धर्म । पन्नालाल जैन 'प्रिय'-फुलैरा। - अभी ही नवीन छपकर दुसरीवार तय्यार हुआ है। इसवार इसमें सोलहकारणवत कथा व सोलह गृहस्थधर्मभावनाओं के सोलह सवैये भी बढ़ा दिये गये हैं। व दूसरीवार छप चुका है। बाइन्डिग होकर तैयार कुछ बढ़ाया घटाया भी गया है। की० ॥) होगया है । ए० १॥) सनिस्दः १) . मैनेकर, दिगंबर जैन पुस्तकालय-सूरत। मैनेजर दि जैन पुस्तकालय सरस।

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36