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दिगंबर जैन।
(२१) : अपराध है। जब ये व्यापार सीझते हैं, पैसा भवनत दशाके सुधारनेका प्रयत्न करेंगे । कमाते हैं, खातावही, कोर्ट कचहरी करते हैं, भाइयों ! जो प्रांत वाम्बर अर्थात् श्रेष्ट३चनवाला वो इनको विद्या क्यों नहीं आती। परंतु आवे कहाता था वह भान बागड़ (जंगली) नामको कहांसे । हमने तो इनको पढ़ने ही नहीं दिया। प्राप्त हो गया, जहां पं० लक्ष्मीचन्द जैसे गोम. क्या हम (नधन हैं जो विद्यालय नहीं खोल दृसारके ज्ञाता, पांडव पुराणके कर्ता आदि महान सक्ते हैं ? नहीं । यदि हम निधन होते, तो ये नर हो गये, आन वहां सुत्र वांचनेवाले नहीं बड़े २ केशरियाजी, मीलोड़ा, गिरनार, पावागढ़, रहे, हाय आन यहां बढ़ई, माट, मोनक लोग, तारंगा, सेजा, डूंगरपुर, तागवाड़ा, कलिंजरा गादीपर बैठकर शास्त्र सुनानेवाले हमारे गुरु बन आदिक विशाल मंदिर कैसे बन जाते ? याब मी बैठे, ये चौमाता करते हैं, पछेड़ी मेंट आदि चढ़ प्रतिवर्ष प्रतिष्ठाएं पूनाएं ( तेराद्वीप, समोसरण, बाते है। जहां देवसेन, हर्षकीर्ति, चतुर्मती जैसे नंदीश्वर, वारसौ चौतीस आदि ) विधान होते हैं आडंबर धारी भेषी लोग मुनि आर्यिका बन बैठे जिनमें तथा व्याहके व मौसरके नीमनोंमें, वर हैं, जहां अय प्रांतका साधारण अक्षराभ्वासी व कन्याके पितावों तिजोरियां भरनेमें, भेषी मनुष्य पंडितजी महारान कहाता है, जहां अष्ट पाखंडी धर्मके नामके धुतारोंके पेट भरने में, द्रव्यकी नित्य पूजा कराने के लिये भी किसी कितना द्रव्य व्यय होता है ? फिर हमारे माई नामधारी पंडितको बुलाना पड़ता है इत्यादि बम्बई, इंदौर, शोलापुर, वीमापुर, पंढरपुर, आक- दशा हो गई, प्रमु रक्षा करो ! मैंने इन प्रांतों में लन, वाही, फलटण, बारामती, परंडा. पूना भ्रमण करके इसकी अवस्थाका पूर्ण परिचय भादि दक्षिणके भनेक स्थानों में व्यापारार्थ चले किया है और इन प्रांतस्थ भाइयोंसे मी मुझे गये हैं, वे प्रायः सभी अपने उद्योग और पुण्यके परिचय है, इनकी वर्तमान अवनत स्थिति लेख. फलोंका सुखसे उपभोग कर रहे हैं, और जो नी में नहीं आसक्ती है । इस लिये ही अपने वहांसे आकर अपने देशके प्रेमश यहां तारंगा- हृदयस्थ मागेको दुछेक शब्दों में दिखा कर यह दिमें प्रतिष्ठाएं करते हैं, ईडा, बड़ाली, केशरि- अपील करता हूं कि आप लोग इस पतित याजीकी बंदनार्थ सदा आते हैं तो क्या विना अवस्थासे शीघ्र उन्नतावस्थाको प्रप्त करने के ही द्रव्यके यह सब कार्य होजाता है ? नहीं२ लिये उक्त दोनों प्रांतों के हितार्थ किसी केन्द्र द्रव्य तो है और माव भी है। परन्तु परिणः स्थानमें एक बृहत “शिक्षासदन" छात्रामन अभी इस ओर नहीं हवा है वस केवल वास सहित खोल देवे तो घ्रि ही यह त्रुटि इतनी ही बात है । हम समझते हैं कि “गई दूर हो जावे, और अन्य प्रांतोंके समान ये मी सो गई अब राख रही को" इस कहावतके प्रकाशमें आना। इसके रिये मेरी सम्मतिमें अनुर हमारे भाई अवश्य ही विचार करेंगे दाहोद (पंचमहाल ) स्थान बहुत योग्य है, और अपने इन प्रांतोंकी अज्ञानमन्च दीन हीन कारण यहां पोष्ट है, तार है, रेलवे स्टेशन है,