Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 26
________________ दिगंबर जैन । (२४) स्त्री०-परै पुष पाला लगै तन गरन, रहै संग वाला, बसै सेन मन । महारेन हेमवंतमें पोगो जन, रहैं डारि परदा सवै निन दरन ॥ पुरुष ०-समित गुप्ति वृषाचार परिसा भान, लगा डाट संवर जे आश्रय दस्न । __ रहे रैन हेमंतमें इस जतन, मिटें शीत भोगनकी सब कड करन ॥ ८ ॥ पि० ॥ स्त्री०-रै माघ सरदी पै दर्दी सनन, स्खें दिल न गरदी वेहरदी दुःखन । । रंगे रंग जर्दी जगावें मदन, फिरै सुर पीछे बप्तताममन । पुरुष-करें ध्यान वृद्धिः बसंती पचन, धरै भाव शुद्धिः न व्यापै मदन । ___नमें सर्व ऋद्धि हरै सब दुःखन, जे अमिपाक निर्भर है सिद्धो करन ॥ ९ ॥ पि० ॥ स्त्री-मिलें फागमें शत्रू अरु मीतगन, यही लोक रीति उल्लंघे कवन । तजो हट विपन, धारो अनुरागमन, चलो फाग खेखन सजन रंगमवन ॥ पुरुष०-उतंग राजू चौदा विडोबत बलन, स्वयं सिद्ध कर्सा न हर्ता कान । भरी डेढ़ मुरज दिख षट रङ्गल, फिरै जीव हुरिहाणे चौदा मुवन ॥ १०॥ पि० ॥ स्त्री-तजो चेत चिंता मेरे मनहरन, मिल मोग भागम विषय सुखकरन । तनै गोदका क्यों उदर लालसर, कहां सुख नरम सुरग त्रिदशन ॥ पुरुष-यह सच है मनुष भव मिलन अति कठिन, सुकुछ थक कठिन बोधदुर्लभ मिलन । करै आप तन मन वचन अनुमान, यही ऊँचपन देवसे नर सुखन ॥११॥ पि० ॥ स्त्री-त्रषारोग बाढ़े लगे ताप तन, विकल हो मम याद आवे वचन । छः दर्शनमें मावै सुकीजे ग्रहण, करो उग्र व्रत दान प्राचरण ॥ पुरुष ०-जे वेशाख दर्शन छ: भावे न मन, विषय पोषक हिंसक परिग्रह धरण । दरब तत्व दर्शाय शिवमग करन, अहिंसामई एक दिन धर्म गन ॥ ११ ॥ पि० ।। स्त्री-करौ लोंदमें न्याय मेरा सनन, चळे छोड़ किस पर हो वरुणा धरण । पराधीन परजाय हम दुःख भान । करें आस किसकी बतावो जतन ॥ पुरुष०-शुभाशुभ स4 व्या अपने रसन, मिलें सुख इनको करै जब दहन । नरम आस कर पालो सद् आचरण, यो समझाय मन सुख चले फिर विपन ॥१३॥ सोरठा-नारी कात विचार, परवस मव भव दुःख भरे । निज चप्त कियो न काज, विकलप तजि व्रत आवरे ॥ . कामताप्रसाद जैन अलीगंज ।

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