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दिवंबर लेन ।
इसकी जड़ की छालको टुकड़े २ करके रात्रिमें जन्में मित्रो देवे, फिर प्रातःकाल उसको मलकर और
में छानकर पान करे तो विशेष लाभ होता है । (१) इसके शर्बतको पीनेसे दाह दूर होती है । (४) उदरशूल में - अजवायन के चूर्णको इसके गरम रसके साथ सेवन करनेसे विशेष उपकार होता है । (१) फोड़े को पकानेके लिए इसके पतों को पीसकर बांधना चाहिए। (६) औषधि योंकी चरपराहट पर इसकी छालका हिम पिलाते हैं । (७) गठिया में इसकी जड़ की छाल के क देको सेवन करने से आरोग्य लाभ होता है । (८) मूत्र पर इसकी १४ माशे जड़को पावमर पानी में रात्रि में मिजो देवे, और प्रातःकाल खूब मलकर वस्त्रमें छाले । इस प्रकारसे उसको एक या दो सप्ताह तक सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र दूर होता है । (९) इसकी जड़ को पीसकर
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स्त्रीकी नामि, वस्ति और योनिपर लेप करनेसे मूढ़गर्म निकल आता है । (१०) बादीकी वमन, रुधिरविकार और उदरकी दुर्बलता पर काळे रंगके मीठे फाटसोंके रस में गुलाबजल और दुगुनी चीनी मिलाकर शर्बत तैयार करके उसको पान करने से शीघ्र काम होता है । (११) चार तोले छालको शीतल जल में पीसकर और मिश्री मिलाकर शर्बत बना लेवे । उस शर्बतको सेवन करने से श्वेतप्रदर नष्ट होता है । (१२) सुनाक पर पके फलोंको १॥ छटांक जल में मिजोकर १ घंटे बाद उनको अच्छी तरहसे मलकर दस्त्रमे छान लेवे । उसको मिश्री मिलाकर पीने से पेशाबकी, कमी चिनग, जलन आदि उपद्रव नष्ट होते हैं । फलके अभाव में इसकी छाल लेनी चाहिये । "वैद्य"
बारह भावना तथा बारह मासा ।
( श्री स्वर्गीय त्यागी शांतिदासजीकृत ) ॥ दोहा ॥
छूटै मिथ्या वासना, गावहु बारह मास । भावौ बारह भावना, शिवसुख पावन आस ॥
पिया जाते वृत रत्थ सजके विपन || सरस तीय सभ्झवे करके जतन ॥ टेक ॥
स्त्री वाचः - " तजै चीक अंडा ये जेठकी तपन, सधैं सह न पर्वत भी लागे लगन । लगे व्यार झरसी, जरावे वदन, चलो पुष्प सेज्या पै की शयन ॥