Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 23
________________ फालसा । ( ११ ) GOO G फालसा, परुषा, पेरुसा, फरुता, फेरुमा, फरुषा, फेरुषा । सं० परूषकः, गिरिपीलुः, नीलचर्म, नीलमण्डल इत्यादि । बं०- परुष, फसला, फल्पा शकरी । म० - पका । क०० - . वेट्टहा, दागली, दोगी, दोगलि । ते ० - पृटिकी, फुटिकी । ता० - तडावी । ते ० - चिट्टीदु । गु० -भ्रामण | म०-फाळल्या, प०-फालसा, प्रा० - फलुहे; फरुषा, शुकरी । सिन्ध-फारहो, फाल्सा, कोल० सिंधिन दामिन | सल्ता -जंगोष्ट । पुश्ती ०. पस्तओची, शिकारिम, एवाह । फा० - पालता, फाळसह, पालसह । अ० - फालसह । ले०Greeviaasiatica _ ० - Asiatic Gree via I यह सीलोन, अवध तथा भारतवर्ष के कितने ही प्रान्तोंकी वाटिकाओं में रोपण किया जाता है, किन्तु पूर्व बंगाल में कम दीख पड़ता है । । वसन्त इसका वृक्ष मध्यम आकारका होता है। छाल भूरे रंग की होती है । पत्ते चार पांच इंच लम्बे, २- २॥ इंच चौड़े, गोलाकार, प्रायः तीन मागवाले, अनीदार और नुकीले होते हैं। ऋतु में पुराने पत्ते गिरकर नवीन पत्ते निकल आते हैं । प्रायः इसी समय यह वृक्ष फूलता फलता है । ४-५ फूलों के गुच्छे लगते हैं । फूल पीले रंगके होते हैं । फिर फळ आकर वे वैशाख, जेठ तक पकजाते हैं । फह मटर के समान, कच्ची भवस्था में हरे और पकने पर काले पड़जाते हैं । दिगंबर जन 1900 आ० म० गुणके दोष -- शीतवीर्य, मूत्र दोषको शोधन करनेवाला तथा वात, पित्त, प्रमेह, योनीदा र लिङ्गकी दाइको नष्ट करनेवाला है। फालसेके कच्चे फल - खट्टे, कषैले, स्वादिष्ट, हल्के, गरम, रूखे, पित्तकारी, चरपरे तथा कफ और वातका नाश करनेवाले हैं । फालसे के पके फल- मधुर, शीतल, स्वा दिष्ट, रुचिकर, पाकके समय मधुर, विष्टम्भकारक, पुष्टिकारक, हृदयको हितकारी, तृप्तिजनक तथा वात, रक्त पित्त, दाह, तृषा, शोफ, पित्त, रुधिर विकार, ज्वर और क्षयरोगको हरने वाले हैं । यू० म० गुण दोष- तीसरे दर्जे में ठंडा और पहले में रूक्ष हृदय, आमाशय और गरम यकृतको बलप्रदान करनेवाला, पित्तज अतिसार, मन; हिचकी और तृषाको निवारण करनेवाला एवं ज्वरकी गरमी, वक्ष:स्थलकी दाह, आमाशय की दाह, मूत्रकी दाह और प्रमेहको दूर करनेवाला है । इसका स्वरस आमाशय के लिए बकारी हृदयकी व्याकुता और घड़कनको हरनेवाला और गरमीकी तृषाको शान्त करनेवाला है। तथा शीत प्रकृतिवाले मनुष्योंके लिए हानिकारक, अनीसुन और गुलकन्द है । प्रयोग - (१) - इसकी जड़, छाल, पत्ते और फल औषधिके काम में आते हैं । सलालोग इसकी जड़ की छालको सन्धिवातपर व्यवहार करते हैं । इसकी छालका काढा स्निग्वताजनक होता है । पत्ते फोड़े, फुन्सी, छाले आदिपर लगाये जाते हैं । फल- संकोचक शीतल और अग्निप्रदीपक होते हैं। इसका शर्बत रुचिकर और रक्तशोधक होता है । २प्रमेह और मूत्रकी दाहपर

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