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दिगंबर जैन मालका
(१३) ६. उत्तम संयम।
पंच स्थावर काय, अरु त्रसका रक्षण करो।
सेवो न विषय कषाय, पञ्चेन्द्रिय-मन वश करो ॥१॥ करके प्रमाद अति क्रूर जीव, त्रस पावर घात करें सदीव । जो मृग-गण करते तृण अहार, उनपर भी क्रूर करें प्रहार ॥ २ ॥ माता सम नित जो दुग्ध दान, देती हैं गायें हर्ष मान । उनके तनुको भी कर विनष्ट हत्यारे खाते अति निकृष्ट । निज-तनमें सुईका विघात, है दुखदाई जब जग विख्यात । तब निन सम परके प्राण जान, कर रक्षा देओ अभय दान ॥४॥ अरि तनका मी न करो विनाश, तन द्वेष करो निजगुण विकाश । बहु-बी विघाती कार्य टाल, कर करुणा कहलाओ दयाल करि मत्स्य भ्रमर, मृग अरु पतंग, इक-इक इंद्रियवश नशे । नरका पांचों छेदें शरीर, नितचित्त चलाता अतुल तीर । इनको है संयम यम समान, घर निग्रह करलो रे ! सुनान । इनका निग्रह कर साधु-वीर, पहुंचे भव-पारावार-तीर
॥ ७ ॥ संयम पंच प्रकार, पंचम-गति कारण लखो। भवि-जन इसको धार, शास्वत आनंद रस चखो ॥८॥
॥१॥
७. नत्तम तप । लो इच्छाको रोक, विषयों में जो ले गिरे । तपको कर मुनि-लोग, नित आतम निर्मल करें मुनि गनतम मनको मत्त मान, उत्तमतप अंकुशसम पिछान । करिणी सम करणोंसे हटाय, शुम-ध्यान रूप-संकल लगाय व्रतिपरिसंख्यासे कर प्रहार, रस स्याग निरस देते अहार । अनशन तपवश आहार रोक, मन निग्रह करते साधु लोग भाकुलित देख किंचित् अहार, कर काय-क्लेश देते विचार ! निग्रह करते मी बार-बार, मुनि माघ सहशको करे स्वार
१ हथनी । २ इन्द्रियों । ३ तीसरा तप ।
॥२॥