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'दिगंबर जैन
COPANO
( १८ )
धर्मध्यान करना ।
छोड़ना, (६) आत्म चितवन ८ उत्तम त्याग - (१) अभय दान, (२) विद्य दान, (३) औषधिदान, (४) आहारदान, इन चार प्रकारके दानोंका देना, तथा सर्व प्रकारकी उपाधि व शरीर संबंधी दोषोंको छोड़ना । दान देनेसे अवगुणका समूह सहन ही नाश होता है । चारों ओर निर्मल कीर्ति फैलती है, शत्रु मी पैरोंपर पड़कर नमस्कार करता है और मोगभूमिके सुख मिलते हैं, परन्तु दान सदा सुपात्रको करना चाहिये ।
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श्री स्याद्वाद महाविद्यालय, काशीमें दान करने से चारों प्रकारके दानका लाभ होता है, क्योंकि जो छात्रगण इस विद्यालय में पढ़ते हैं उनको आहारदान व विद्यादान तो नित प्रति ही होता है । जब छत्रगण बीमार पड़ते हैं, तो उनकी दवा मी की जाती है, अतएव दान की हुई रकमका एक भाग औषधि दानमें भी लगता है। इस विद्यालय द्वारा योग्यता प्राप्त किये विद्वान तथा धर्माध्यापक व छात्रगण यथाशक्ति अमय दानका भी प्रयत्न करते हैं । इस विद्यालय में ९० विदेशी छात्र विद्याध्ययन करते हैं जिनके मोजन, वस्त्र, पढ़ाई आदिवा १०००) मासिक खर्व है जो
समाजके उदार दातारोंकी नित प्रति दातृत्व पर ही निर्भर है । इस विद्यालयको स्थापित हुए १८ वर्ष हुए । अबतक १०० विद्वान इस विद्यालय द्वारा योग्यता प्राप्त करके प्रत्येक अंतमें अधिष्ठाता, धर्माध्यापक, उपदेशक - प्रचारक, सादिक, सुररेन्टेन्डेन्ट आदिका कार्य योग्यता पूर्वक कर रहे हैं ।
rage इस परमपवित्र पर्युषण पर्व में प्रत्येक स्थानके माइयों को इस विद्यालय में मी दान करना चाहिये । सालमें १६९ दिन होते हैं । (३९) रोजाना का खर्च है । इस प्रकार ३६५ दिनों के खर्च के लिये हर शहर व कसबा के भाइयों को यथाशक्ति अवश्य दान करना चाहिये । श्री संग्रह श्रावकाचारजी में कहा है:यत्सूनायोगतः पापं संचिनोति गृही धनम् । सं तत्प्रक्षालयत्येव पात्रादानाम्बुपूरतः ॥
अर्थात- गृहस्थ लोग पंच सूना (पीसना, खाँढ़ना, चूल्हा सुलगाना, पानी भरना, झाड़ना) के संबंध से जिस पाप समुहका संग्रह करते हैं, उसे पात्र दान रूप जल प्रवाहसे नियमसे घो डालते हैं ।
नोट - विशेष विवरण के लिये श्री स्याद्वाद महाविद्यालय काशीकी वार्षिक रिपोर्ट मंगाइये ।
(९) उत्तम अकिंचन्य- सर्व प्रकार की सांसारिक सामग्रियों ( २४ प्रकारकी परिग्रह) से
ममता घटाना व उनका त्याग करना ।
(१०) उत्तम ब्रह्मचर्य - विषय सेवन
अभाव और विषयोंसे अनुराग छोड़कर ब्रह्म (स्वत्मा) में तल्लीन होना, ज्ञानकी वृद्धके लिये गुरुकुलमें रहना व उनकी आज्ञा पालन करना, और विषय मोगादिक पुष्ट करनेवाले सर्व प्रकार के सुस्वाद भोजन, आभूषण, शृंगारादिक छोड़ना ।
इस दशलक्षण धर्मके सेवन करनेसे अजर अमर अविनाशी मोक्ष सुखकी प्राप्ति होती है।
इस लिये हो भव्यनन ! इसका नित्य पालन करो | ऐसा श्री आचार्यका आशीर्वाद है । सुमतिलाल जैन ।