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रोहिणी की कथा
तब रोहिणी बोली कि हे पिता ! जो ऐसा हो तो प्रथम तो आगम हो बाधित होगा क्योंकि इसी के द्वारा पर के दोष और गुण की कथा प्रारंभ होती है । इस जगत् में सर्वथा मौन धारण करने वाला कौन है ? जैसे कि ये महर्षिगण भी विशिष्ट चेष्टा करते हुए दूसरों के चरित्र कहा करते हैं। इत्यादि गोलमाल बोलती हुई सुनकर पिता ने भी उसको अवगणना करी । वैसे ही गुरु आदि ने भी उसको उपेक्षा करो | जिससे वह स्वच्छन्द्र होकर फिरने लगी ।
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अब एक समय वह राजा की पटरानी के शोल के सम्बन्ध मैं विरुद्ध बात करने लगी। वह रानी को दासी ने सुनकर रानी से कही व रानी ने राजा को कही । जिससे राजा ने क्रोधित हो उसके बाप को उपालंभ दिया कि- तेरी पुत्री हमारे विषय में भी ऐसा कुत्रचन बोलती है। सेठ बोला कि हे देव ! वह हमारा कहना नहीं मानती है । तब राजा ने उसका खूब विटंबना करके उसे देश से निकल जाने का हुक्म किया ।
तब वह पद पद पर सामान्य जनों से निन्दित होती हुई तथा उसके स्वजन सम्बंधियों की ओर से टगर ढंगर देखी जाती हुई देश पार हुई । उसकी यह स्थिति देखकर सत्कथा करने वाले मनुष्यों को अधिक निर्वेद हुआ कि हाय हाय ! विकथा में आसक्त होने वाले लोगों को कितने दारुण दुःख प्राप्त होते हैं ? तथा उसको वैसा फल पाई हुई देखकर कोई कोई कहने लगे कि अरे ! इसका धर्म भी ऐसा ही होगा । इस प्रकार यह जगह जगह बोधिबीज के घात की कारण हुई ।
वह नाना प्रकार के शीत, ताप तथा क्षुधा, पिपासा आदि दुःख सहकर मरकर नरक को गई। वहां से निकल कर पुनः