Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 265
________________ • २५४ कृतज्ञता गुण पर सौंपा । पश्चात् विमलकुमार, रानियों, नगरजन और मंत्रियों के साथ राजा धवल ने बुध सूरि से दीक्षा ग्रहण की। इस समय वामदेव विचारने लगा कि-ऐसा न हो किकुमार मुझे बलात् दीक्षा दिलावे अतः मुट्ठी बांधकर वहां से भाग गया। कुमार मुनि ने उसका कारण गुरु से पूछा तो वे बोले किहे विमल ! यह मलीन चरित्र पूछने का तुझे क्या प्रयोजन है ? अपने कार्य में विघ्न उत्पन्न करने वाले इसके चरित्र की तू इच्छा ही मत कर । तब विमल बोला कि-आप पूज्य का वचन शिरोधार्य है। अब रत्नचूड़ विद्याधर अपने को कृतकृत्य हुआ मानकर गुरु के चरण कमलों में नमनकर अपने नगर को गया । कुमार साधु कृतज्ञ शिरोमणि होने से एक समय मनमें विचारने लगा कि अहा ! रत्नचूड़ की परोपकारिता को धन्य है । उसने प्रथम तो मुझे जिनेश्वर के दर्शन रूप रस्से से संसार रूपी भयंकर कूप में गिरने से बचाया । और अभी पुनः बुध मुनीश्वर के दर्शन करा कर मुझे तथा इन सर्व जनों को सिद्धिपुरी के सन्मुख किया । इस प्रकार नित्य मन में विचारते हुए वह तथा धवल राजा अष्टकर्मों का क्षय करके अति निर्मल पद को प्राप्त हुए। वामदेव उस समय दीक्षा ग्रहण के भय से भागा हुआ कंचनपुर में गया और वहां सरल सेठ के घर रहने लगा । उक्त सेठ पुत्र हीन होने से इसे पुत्र समान मानने लगा और उसने

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