Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 285
________________ २७४ परहितार्थकारिता गुण पर उसे अदृश्य हुआ देखकर राजकुमार उक्त नागरिक पुरुष को साथ लेकर राजभवन में आया। वहां सातवीं भूमि के स्तंभो में स्थित शाल-भंजिकाएं (पुतलिये) हाथ जोड़ कर कुमार का स्वागत कर बोलने लगीं । पश्चात् वे पुतलियां स्तम्भों पर से नीचे उतरी और उन्होंने कुमार को बैठने के लिये सुवर्ण का आसन दिया । तब उक्त पुरुष के साथ राजकुमार वहां बैठा । इतने में आकाश से वहां सम्पूर्ण स्नान करने की सामग्री आ पहुँची । तब पुतलियां प्रमुदित होकर बोली कि-कृपा कर यह पोतिका वस्त्र पहिन कर स्नान करिये । राजकुमार बोला कि-मेरा मित्र नगर के बाहिर के उद्यान में है । उसे बुला लाओ। तदनुसार वे उसे भो शीघ्र वहां ले आई पश्चात् उन्होंने मित्र सहित भीमकुमार को स्नान कराकर भक्ति पूर्वक भोजन कराया। इसके अनन्तर वह विस्मित होकर क्षण भर पलंग पर बैठा । इतने में देवता प्रत्यक्ष होकर कुमार के सन्मुख हाथ जोड़ कर बोला कि-तेरे प्रबल पराक्रम से मैं संतुष्ट हुआ हूँ अतः वर मांग। ___ कुमार बोला कि-जो तू मुझ पर प्रसन्न हुआ हो तो कह कि-तू कौन है ? किस लिए हमारा इतना उपचार करता है ? और यह नगर कैसे उजड़ हुआ है ? देवता बोला कि- यह कनकपुर नामक नगर है । इसमें कनकरथ नामक राजा था। जिसको कि तू ने बचाया है और मैं इसका चंड नामक पुरोहित था मैं सब लोगों पर सदैव क्र द्ध रहता था । जिससे सब लोग मेरे शत्रु हो गये । कोई भी स्वजन नहीं रहा । यह राजा भी स्वभाव से कर और प्रायः कान का कच्चा था । जिससे अपराध की शंका मात्र से भी भारी दंड देता था।

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