Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 301
________________ २९० शुद्ध भूमिका पर कि शीघ्र ही चित्रसभा बनवाओ। तब उसने अतिविशाल (महान् ) शाल (वृक्ष) वाली, बहुत से शकुन (पक्षियों ) से शोभती, और शुभ छाया वाली उद्यान भूमि के समान विशाल शाला (परशाल ) वाली, बहुशकुन (मंगल) से अलंकृत और पवित्र छाय (छज्जे ) वाली महा सभा तैयार कराई। पश्चात् राजा ने चित्रकारी में सिद्ध-हस्त नगर के मुख्य चित्रकार विमल व प्रभास को बुलाया । उनको आधी आधी सभा बांटकर दे दी और बीच में पदों बंधाकर निम्नानुसार आज्ञा दी। देखो! तुमको एक दूसरे का कार्य कभी न देखना चाहिये व अपनी २ मति के अनुसार यहां चित्र बनाना चाहिये । मैं तुम्हारी योग्यता के अनुसार तुमको इनाम दूगा । राजा के यह कहने से वे परस्पर स्पर्धा से बराबर काम करने लगे । इस तरह छः मास व्यतीत हो गये । तब राजा उत्सुक हो उनको पूछने पर विमल बोला कि-हे देव ! मेरा भाग मैंने तैयार कर लिया है । तब मेरु के समान उस भाग को सुवर्ण से सुशोभित और विचित्रता से चित्रित किया हुआ देखकर राजा ने प्रसन्न हो उसे महान् पारितोषिक दिया । ___ प्रभास को पूछने पर वह बोला कि मैं ने तो अभी चित्र निकालना प्रारम्भ भी नहीं किया क्योंकि अभी तक तो मैंने भूमि ही की सुधारणा की है। राजा ने कहा कि-ऐसा तूने क्या भूमि कर्म किया है। यह कह पर्दा उठाया तो वहां तो अधिक सुन्दर चित्रकारी देखी । तब राजा ने उसको कहा कि-अरे ! तू हम को भी ठगता है ।

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