Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 306
________________ श्रावक के चार प्रकार २६५ जिसके मन में ठीक तरह से बैठ जाय वह दर्पण के समान सुश्रावक शास्त्र में कहा गया है । ___ जो पवन से हिलती हुई ध्वजा के समान मूढ़ जनों से भ्रमित हो जावे वह गुरु के वचन पर अपूर्णविश्वास वाला होने से पताका समान है । जो गीतार्थ के समझाने पर भी लिये हुए हठ को नहीं छोड़ता है वह स्थाणु के समान है, किन्तु वह भी मुनिजन पर अद्वेषो होता है । जो गुरु के सत्य कहने पर भी कहता है कि, तुम तो उन्मार्ग बताते हो, निह्नव हो, मूर्ख हो, मंदधर्मी हो इस प्रकार गुरु को अपशब्द कहता है वह खरंट समान श्रावक है । जैसे गंदा अशुचि द्रव्य उसको छुपाने वाले मनुष्य को खरड़ता है ऐसे ही जो शिक्षा देने वाले को ही खरड़ता है (दूषित करता है) वह खरंट कहलाता है । __ खरंट व सपत्नी समान श्रावक निश्चय से तो मिथ्यात्वी है, तथापि व्यवहार से श्रावक माना जाता है, क्योंकि वह जिनमन्दिर आदि में आता जाता है । यह अन्य प्रसंग की बात अन बन्द करते हैं उक्त भावश्रावक के लक्षण याने चिह्न शुभ गुरु याने संविग्न आचार्य से याने आगे कहे जावेंगे सो कहते है । इस प्रकार से श्री-देवेन्द्रसूरिविरचित और ____ चारित्रगुण रूप महाराज के प्रसाद रूप श्री धर्मरत्न की टीका का पीठाधिकार समाप्त हुआ। प्रथम भाग संपूर्ण

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