Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 305
________________ २६४ श्रावक के चार प्रकार शंका-आगम में तो श्रावक के भेद औरप्रकार से कहे हुए हैं, क्योंकि श्री स्थानांग सूत्र में श्रमणोपासक चार प्रकार के कहे हैं-यथा-माता पिता समान, भ्राता समान, मित्र समान और सपत्नो समान, अयवा दूसरे प्रकार से चार भेद हैं-यथा-दर्पण समान, ध्वजा समान, स्थाणु समान, व खरंट समान । ये सब भेद साधु आश्रित श्रावक कैसे ? उसके लिये कहे हैं । अब इन सब भेदों का यहां कहे हुए चार भेदों में से किस भेद में समावेश होता है ? उत्तर-व्यवहारनय मत से ये सब भावश्रावक हैं, क्योंकि व्यवहार वैसा कराता है। निश्चयनय के मत से सपत्नी व खरंट समान मिथ्यादृष्टि प्रायः जो होते हैं वे द्रव्यश्रावक हैं और शेष भावश्रावक हैं कारण कि इन आठों भेद का स्वरुप आगम में इस प्रकार वर्णित किया है । जो यति के काम की सम्हाल ले, भूल देखे तो भी प्रीति ने छोड़े और यतिजनों का एकान्त भक्त हो सो माता समान श्रावक है। जो हृदय में स्नेहवान होते भी मुनियों के विनय कर्म में मंद आदरवाला हो वह भाई समान है, वह मुनि को पराभव होने से शीघ्र सहायक होता है । जो मानी होकर, कार्य में न पूछते जरा अपमान माने और अपने को मुनियों का वास्तविक स्वजन समझे वह मित्र समान है। जो स्तब्ध होकर छिद्र देखता रहे, बार २ भूल चूक कहा करे वह श्रावक सपत्नी समान है वह साधुओं को तृण समान समझता है। दूसरे चतुष्क में कहा है कि-गुरु का कहा हुआ सूत्रार्थ

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