Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 288
________________ भीमकुमार की कथा २७७ इसलिये हे भगवन् ! आप कृपा करके मुझे विशुद्ध सम्यक्त्व दीजिए । तब कनकरथ तथा राक्षस आदि ने भी कहा कि-हमको भी दीजिए। तदनुसार गुरु ने उन सब को सम्यक्त्व दिया, और भीमकुमार मुनीश्वर को नमन करके राक्षस आदि के साथ कनकरथ राजा के घर आया । __ अब कनकरथ राजा अनेक सामन्त मन्त्री आदि से परिवारित हो कुमार को नमन कर कहने लगा कि-यह जीवन, यह महान् राज्य, ये पुरलोकः, यह हमारी महान् लक्ष्मी तथा जो सम्यक्त्व प्राप्त हुआ वह सब आपका प्रसाद है । अतएव हे नाथ ! हम आपके सेवक है । अतः हम को समुचित कार्य में जोड़िये कि जिससे आपके विशेष आभारी होवे । कुमार बोला कि-जैसे जीवों का जन्म मरण परस्पर हेतु-भूत हैं। वैसे ही संपदा और आपदा भी है। उसमें दूसरे कौन हेतु हैं। किन्तु तुम सुकुल में जन्मे हुए व भव्य हो तो तुम्हारा कर्तव्य है कि इस अतिदुर्लभ जिन-धर्म में प्रमाद नहीं करना चाहिये । व सार्मिकों में बंधुभाव रखना, साधुवर्ग की सेवा में तथा परहितसाधन में सदैव तुमको यत्न रखना चाहिये । तब वे हाथ जोड़ कर बोले कि हे नाथ ! आप कुछ दिन यहां रहिये ताकि हम भी जिन-धर्म में कुशल हो सकेंगे। इस प्रकार उनका वचन सुन कर ज्योंही भीमकुमार उत्तर देने को तैयार हुआ त्योंही डमडम करते डमरू के शब्द से राजा और लोगों को डराती हुई बीस बाहुधारी उक्त काली देवी कापालिक के साथ वहां आई। वह बोली कि-हे कुमार ! उस समय तुझे तेरे मित्र सहित हाथी उठा ले गया तब मैं अवधि से यह जान कर कि तेरा हित होने वाला है, एक पग भी नहीं

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