Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 270
________________ भीमकुमार की कथा श्रावक सदैव साधुओं को वन्दना करे, पूछे, उनकी पर्युपासना करे, पढे, सुने, चिन्तवन करे और अन्य जनों को धर्म कहे । कैसा होकर सो कहते हैं - निरीहचित याने निःस्पृही होकर, क्योंकि सस्पृह होकर शुद्ध मार्ग का उपदेश करे तो भी प्रशस्य नहीं होता । २५.६ कहा है कि - तप और श्रुत ये दो परलोक से भी अधिक तेज वाले हैं किन्तु ये ही स्वार्थी मनुष्य के पास होवें तो निःसार होकर तृण समान हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है सो कहते हैं क्रि - महासत्त्ववान् होता है उससे, कारण कि सत्त्ववान् पुरुषों ही में ऐसे गुण होते हैं । परोपकारतत्परता, निःस्पृहता, विनीतता, सत्यता, उदारता, विद्याविनोदिता और सदैव अदीये गुण सत्ववान् पुरुष ही में होते हैं । नता, भीमकुमार की कथा इस प्रकार है । कपिशीर्षक दलों (कंगूरों) से सुशोभित, जिनमन्दिर रूप केशर वाला, लक्ष्मी से सेवित किन्तु जडके संग से रहित कमल समान कमलपुर नामक नगर था। वहां शत्रु राजाओं के हाथियों की घटा को तोड़ने में बलवान और नीति रूप वन में निवास करने वाले सिंह के सदृश हरिवाहन नामक राजा था । उसकी मालती के फूल समान सुगन्धित शीलवान् मालती नामक रानी थी । उसका अगणित करुणामय उपकार - परायण भीम नामक कुमार था । उस भीम कुमार का अति पवित्र बुद्धिशाली बुद्धिल नामक मन्त्री का बुद्धिमकरध्वज नामक प्रेम परिपूर्ण पुत्र मित्र था । एक दिन मित्र को साथ लेकर उत्तम विनयवान् और नीतिनिपुण कुमार अपने घर से प्रातः काल में निकलकर राजा के पास

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