Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 279
________________ २६० परहितार्थकारिता गुण पर और गुरु के चरण छूकर कौतुकवश सिंह के समान छलांग मारकर उक्त भुजा पर चढ़ बैठा। महादेव के कंठ समान कृष्ण भुजा पर चढ़कर कुमार आकाश मार्ग में जाता हुआ ऐसा शोभने लगा मानो कालिकासुर पर चढ़ा हुआ विष्णु हो । स्थूल और स्थिर भुजा रूप फलक (पटिये) पर स्थित महा समुद्र का उल्लंधन करता हुआ ऐसा दीखने लगा मानो टूटी हुई नौका का वणिक तैरता हो । वह अनेक वृक्षों वाले पर्वत तथा नदियों को देखता हुआ जा रहा था। इतने में उसने अतिशय भयानक कालिका का मंदिर देखा । उक्त मन्दिर के गर्भगृह में उसने शस्त्र धारी, महिषवाहिनी तथा मनुष्यों की खोपड़ियों से आभूषेत कालिका की मूर्ति देखी उस मूर्ति के सन्मुख उसने पूर्व परिचित कापालिक को अपने बाम हाथ में केश द्वारा एक मनुष्य को पकड़े हुए देखा । तथा जिस भुजा पर चढ़कर राजकुमार बैठा था वह उस दुष्ट योगी की दाहिनी भुजा थी । केश से पकड़े हुए पुरुष को देखकर कुमार विचार करने लगा कि-इस पुरुष को यह कुपाखंडी क्या करने वाला है सो मैं गुप्तरीति से देखू। पश्चात् जो कुछ करना होगा, करूगा । यह सोचकर कुमार बाहु पर से उतर कर उसी योगी के पीछे गुपचुप खड़ा रहा । अब उक्त भुजा योगी को कुमार की तलवार देकर अपने स्थान पर लग गई। अब योगी उस मनुष्य को कहने लगा कि-तेरे इष्ट देव का स्मरण कर व तुझे जिसकी शरण लेना हो सो ले ले, क्योंकि मैं तेरा मस्तक इस तलवार से काटकर देवी की पूजा करने वाला हूँ। वह पुरुष बोला कि-परम करुणा-जल के सागर भगवान्

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