Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 254
________________ विमलकुमार की कथा हे कुमार ! जिस समय आप जिनेश्वर को नमन करने के लिये मंदिर के अन्दर गये थे और मैं द्वार पर खड़ा था । उस समय सहसा वहां एक नंगी तलवार वाली विद्याधरी आई । उसने मेरे साथ रमण करने के लिये मुझे आकाश में उठाया । वह मुझे बहुत दूर ले गई। इतने में वहां एक दूसरी विद्याधरी आई । वह भी मेरे रूप पर मोहित हो मुझे उठा ले जाने को तैयार हुई। जिससे वे दोनों विद्याधरियां लड़ने लगीं व मैं भूमि पर गिर पड़ा। जिससे भाग निकला व आपके मनुष्यों को आ मिला तथा आपको भी मिला हूँ । २४३ इस प्रकार उसकी कही हुई स्नेह युक्त वचन रचना से कुमार रंजित होकर बोला कि अच्छा हुआ कि मैं तुझे दृष्टि से देख सका हूँ | इतने में वामदेव मानो महान् पर्वत से दब गया हो अथवा वज्र से भेदित हुआ हो वैसी वेदना से व्याकुल हो गया । उसका सिर दुखने लगा । अंग टूटने लगा। दांत हिलने लगे। पेट में शूल होने लगा और सहसा आंखों की पुतलियां ऊची चढ़ गईं । तब विमलकुमार भी व्याकुल हुआ तथा वहां भारी हाहाकार मच गया । जिससे धवल नरेन्द्र भी वहां आ पहुँचा और बहुत से मनुष एकत्रित हो गये । अच्छे २ वैद्य बुलाये गये । उन्होंने अनेक उपचार किये परन्तु कुछ भी गुण न हुआ । इतने ही में विमलकुमार को रत्न की बात स्मरण हुई । कारण कि- वह सर्व रोग नाशक था । यह सोच वहां जाकर कुमार ने उसे देखा परन्तु वह नहीं मिला। जिससे वह खिन्न होकर पीछा मित्र के पास आया ।

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