Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 238
________________ विमलकुमार की कथा ર૭ उससे याने कि कृतज्ञता भाव से किये हुए गुरुजन के बहुमान से गुणों की याने क्षान्ति आदि अथवा ज्ञान आदि गुणों की बृद्धि होती है। (होती है यह क्रिया पद अध्याहार से ले लेना चाहिये)। इस कारण से इस धर्माधिकार के विचार में गुणाई याने गुणों की प्रतिपत्ति करने के योग्य कृतज्ञ ही है । ( कृतज्ञ शब्द का अर्थ ऊपर कहा ही है.)- धवलराज के पुत्र विमलकुमार के समान । धवलराजा के पुत्र विमलकुमार की कथा इस प्रकार है। अति ऋद्धि से वर्द्धमान, वर्द्धमान नामक नगर था। वह वद्ध मानक (शरावला) के समान अनेक मंगल का कारणभूत था। वहां शीघ्रता से नमन करते हुए राजा रूप भ्रमरों से सेवित चरण कमल वाला राज्यभार को धारण करने में धवलवृषभ समान धवल नामक राजा था। उसकी सदैव सुभाषिणी करने वाली और सुमन (पुष्प) धारण करती देवी के समान किन्तु अतिशय कुलीन कमलसुन्दरी नामक देवी (रानी) थी। उनका सम्पूर्ण कलाओं में कुशल, बाण के समान सरल, पाप मल से रहित और कृतज्ञतारूप हंस को रहने के लिये उत्तम कमल के समान विमल नामक पुत्र था। महामती उस कुमार को सामदेव सेठ का वामदेव नामक पुत्र जो कि- कपट कला का कुलगृह था । वह मित्र हुआ। वे दोनों जने किसी समय क्रीड़ा करने के हेतु परस्पर क्रीड़ा करने में प्रेम धारण करके क्रीड़ानन्दन नामक उद्यान में गये। वहाँ रेती में दो मनुष्य के पद चिह्न देखकर शरीर लक्षण जानने में निपुण बुद्धि विमल अपने मित्र से कहने लगा

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