Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 248
________________ 'विमलकुमार की कथा • २३७ सर्वोषधी, संभिन्नश्रोत, अवधिज्ञान, ऋजुमतिज्ञान, विपुलमतिज्ञान, चारणलब्धि, आशोविषलब्धि, केवलज्ञान, मन पर्यवज्ञान, पूर्वधरपन, अर्हत्पन, चक्रवर्तीपन, बलदेवपन. वासुदेवपन क्षीराश्रव, मध्वाश्रव, सर्पिराश्रवलब्धि, कोष्टबुद्धि, पदानुसारि लब्धि, बीजबुद्धि, तेजोलेश्या, आहारकलब्धि, शीतलेश्या, चैक्रियलब्धि, अक्षीण महानस लब्धि, और पुलाकलब्धि इत्यादि लब्धिएँ परिणाम व तप के वश प्रकट होती हैं। ___ अब उसका विवरण करते हैं:-आमर्ष याने स्पर्श मात्र ही औषध रूप हो वह आमषधिलब्धि है । मूत्र और पुरीष के बिन्दु औषधि हो जाय वह विप्रौषधि है । दूसरे इस प्रकार व्याख्या करते हैं कि-विड् शब्द से विष्टा और प्रशन्द से पेशाब लेना । जिससे वे तथा अन्य भी जिनके अवयव सुगंधित होकर रोग मिटा सकते हैं । उनको उस २ औषधि की लब्धिवाले जानना चाहिये। जो सर्व ओर से सर्व इन्द्रियों से सर्व विषयों को ग्रहण करे अथवा भिन्न २ जाति के बहुत से शब्द सुन सके वह संभिन्न श्रोतलब्धिवान है। सामान्य मात्र को ग्रहण करने वाला मनोज्ञानी ऋजुमति है। वह प्रायः विशेष को ग्रहण न करके घट सोचा जाय तो घट ही को ग्रहण करता है। वस्तु के विशेष पर्याय को ग्रहण करने वाला मनोज्ञानी विपुलमति कहलाता है । वह घड़े को सोचते हुए उसके सैकड़ों पर्याय से उसका ग्रहण कर सकता है। ... जंघा व विद्या द्वारा जो अतिशय चलने में समर्थ है वह चारणलब्धिवान है, यहां जंघाचारण जंघाओं से सूर्य की किरणों की निश्रा से भी जा सकता है । वह एक उत्पात में रुचकवर पर

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