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'विमलकुमार की कथा
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सर्वोषधी, संभिन्नश्रोत, अवधिज्ञान, ऋजुमतिज्ञान, विपुलमतिज्ञान, चारणलब्धि, आशोविषलब्धि, केवलज्ञान, मन पर्यवज्ञान, पूर्वधरपन, अर्हत्पन, चक्रवर्तीपन, बलदेवपन. वासुदेवपन क्षीराश्रव, मध्वाश्रव, सर्पिराश्रवलब्धि, कोष्टबुद्धि, पदानुसारि लब्धि, बीजबुद्धि, तेजोलेश्या, आहारकलब्धि, शीतलेश्या, चैक्रियलब्धि, अक्षीण महानस लब्धि, और पुलाकलब्धि इत्यादि लब्धिएँ परिणाम व तप के वश प्रकट होती हैं। ___ अब उसका विवरण करते हैं:-आमर्ष याने स्पर्श मात्र ही औषध रूप हो वह आमषधिलब्धि है । मूत्र और पुरीष के बिन्दु औषधि हो जाय वह विप्रौषधि है । दूसरे इस प्रकार व्याख्या करते हैं कि-विड् शब्द से विष्टा और प्रशन्द से पेशाब लेना । जिससे वे तथा अन्य भी जिनके अवयव सुगंधित होकर रोग मिटा सकते हैं । उनको उस २ औषधि की लब्धिवाले जानना चाहिये।
जो सर्व ओर से सर्व इन्द्रियों से सर्व विषयों को ग्रहण करे अथवा भिन्न २ जाति के बहुत से शब्द सुन सके वह संभिन्न श्रोतलब्धिवान है।
सामान्य मात्र को ग्रहण करने वाला मनोज्ञानी ऋजुमति है। वह प्रायः विशेष को ग्रहण न करके घट सोचा जाय तो घट ही को ग्रहण करता है। वस्तु के विशेष पर्याय को ग्रहण करने वाला मनोज्ञानी विपुलमति कहलाता है । वह घड़े को सोचते हुए उसके सैकड़ों पर्याय से उसका ग्रहण कर सकता है। ... जंघा व विद्या द्वारा जो अतिशय चलने में समर्थ है वह चारणलब्धिवान है, यहां जंघाचारण जंघाओं से सूर्य की किरणों की निश्रा से भी जा सकता है । वह एक उत्पात में रुचकवर पर