Book Title: Dharmratna Prakaran Part 01
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 246
________________ विमलकुमार की कथा २३५ सत्पुरुषों को उचित है । क्योंकि-साधर्मी मित्र को भी वन्दनादिक करना कहा है। ' विद्याधर बोला-हे राजकुमार ! ऐसा मत बोल । तू ही गुणवान होने के कारण सब का गुरु है । तब कुमार बोला किगुणवान और कृतज्ञ-जनों का यही चिन्ह है कि-वे नित्य गुरु की पूजा करने वाले होते हैं। . कारण कि वे ही महात्मा हैं। वे ही धन्य हैं । वे ही कृतज्ञ हैं। वे ही कुलीन व धीर हैं । वे ही जगत् में वन्दनीय हैं । वे ही तपस्वी हैं और वे हो पंडित हैं कि-जो सुगुरु महाराज का निरन्तर दासत्व, प्रष्यत्व, सेवकत्व तथा किंकरत्व करते हुए भी लज्जित नहीं होते। तथा मन, वचन व काया भी वही कृतार्थ हैं । जो गुणवान गुरु की आरोग्यता का चिन्तवन करने में, उनकी स्तुति करने में तथा विनय करने में सदैव लगे रहते हैं। सम्यक्त्व दायक का प्रत्युपकार तो अनेक भवों में करोड़ों उपकार करते भी नहीं हो सकता है । इसलिये हे सत्पुरुष ! मैं तेरे प्रसाद से बोध पाया हूँ और दिक्षा लूगा, किन्तु पिता आदि यहां मेरे बहुत से बांधव हैं । इससे जो उनको भी प्रतिबोध होवे तो मैं कृतकृत्य होऊं । इसलिये सुगुरु कौन है सो मुझे बता । तब विद्याधर हर्ष पाकर बोला कि बुध नामक आचार्य कि- जो जल से भरे हुए मेघ के समान गर्जना करने वाले हैं, वे जो किसी प्रकार यहां पधारें तो तेरे भाइयों को वे प्रतिबोध दें। तब कुमार ने पूछा कि- हे महाभाग ! उनको तू ने कहां देखे हैं । वह बोला कि इसी उद्यान में जिनमंदिर के समीप गत अष्टमी को परिवार सहित मैं यहां आया था । तब जिनमंदिर

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