Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 13
________________ धर्मरसायन धम्मेण कुलं विउलं धम्मेण य दिव्वरूवमारोग्गं । धम्मेण जए कित्ती धम्मेण होइ सोहग्गं ।।4।। धर्मेण कुलं विपुलं धर्मेण च दिव्यरूपमारोग्यम् । धर्मेण जगति कीर्तिः धर्मेण भवति सौभाग्यम् ।।4।। धर्म से व्यक्ति को विशाल कुल प्राप्त होता है। धर्म से ही दिव्य रूप तथा उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है। धर्म से ही व्यक्ति का संसार में यश फैलता है और धर्म से ही सौभाग्य प्राप्त होता है। वरभवणजाणवाहणसयणासणयाणभोयणाणं च । वरजुवइवत्थुभूसणं संपत्ती होइ धम्मेण ।।5।। वरभवनयानवाहनशयनासनयानभोजनानां च । वरयुवतिवस्त्रभूषणानां सम्प्राप्तिः भवति धर्मेण ||5|| श्रेष्ठ भवन, रथ आदि यान, अश्व आदि वाहन, शयन-आसन, भोजन, सुन्दरी युवती, वस्त्र एवम् आभूषण आदि की प्राप्ति भी धर्म से होती है। तंणत्थिजंण लभइ धम्मेण करण तिहुयणे सयले। जो पुण धम्मदरिदो सो पावइ सव्वदुक्खाइं 18॥ तन्नास्ति यन्न लभ्यते धर्मेण कृतेन त्रिभुवने सकले। यः पुनः धर्मदरिद्रः स प्राप्नोति सर्वदुःखानि ||6|| समस्त त्रिलोक में ऐसी कोई वस्तुनहीं है, जो धर्म (का आचरण) करने से प्राप्त नहो सकती हो। किन्तु जो धर्म से दरिद्र अर्थात् हीन है वह समस्त दुःखों को प्राप्त करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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