Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 72
________________ 61 -धर्मरसायन भवियाण बोहत्थणं इय धम्मरसायणं समासेण । वर पउमणंदिमुणिणा रइयं जमणियमजुत्तेण ।।1931 भव्यानां बोधनार्थं इदं धर्मरसायनं समासेन | वरपद्मनन्दिमुनिना रचितं यमनियमयुक्तेन ||193|| यम-नियमों से युक्त श्रेष्ठ पद्मनन्दि मुनि ने भव्य (सांसारिक) जीवों के बोध के लिए, संक्षेप में इस धर्मरसायन ('धम्मरसायणं' नामक ग्रन्थ) का प्रणयन् किया है। इदि सिरिधम्मरसायणं सम्मत्तं । इति श्रीधर्मरसायनम् समाप्तम् । इस प्रकार यह 'धम्मरसायणं' संज्ञक ग्रन्थ समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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