Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 44
________________ 33 द्वारा निर्मित सोने, चाँदी और लोहे के तीन नगरों) का दहन किया वह परमात्मा कैसे हो सकता है ? धर्मरसायन रण्णे तवं करंतो दट्ठूण तिलोत्तमाए लावण्णं । बम्मह सरेहिं विद्धो तवभट्टो चउमुहो जाओ ||103॥ अरण्ये तपः कुर्वन् दृष्ट्वा तिलोत्तमाया लावण्यम् । ब्रह्मा शरैः विद्धः तपोभ्रष्टः चतुर्मुखो जातः ॥103 वन में तपस्या करता हुआ चतुर्मुख ब्रह्मा तिलोत्तमा के सौन्दर्य को देखकर कामबाणों से घायल हो गया अतः तप से भ्रष्ट हो गया । कामाग्गितत्तचित्तो इच्छयमाणो तिलोवमारूवं । जो रिच्छीभत्तारो जादो सो किं होड़ परमप्पो ||10411 कामाग्नितप्तचित्तः इच्छन् तिलोत्तमारूपम् । य ऋक्षिभर्त्ता जातः स किं भवति परमात्मा ||104|| कामाग्नि से संतप्त हृदय वाला जो व्यक्ति तिलोत्तमा के रूप को चाहता हुआ रीछनी अर्थात् जामवंत की पुत्री जामवंती का भी पति बन गया, वह परमात्मा कैसे हो सकता है ? जइ एरिसो वि मूढो परमप्पा वुच्चए एवं । तो खरघोडाईया सव्वे वि य होंति परमप्पा ||105॥ यदि एतादृशोऽपि मूढः परमात्मा उच्यते एवम् | तर्हि खरघोटकादिकाः सर्वेऽपि च भवन्ति परमात्मानः ||105|| यदि इस प्रकार के मूढ व्यक्ति को भी परमात्मा कहा जा सकता है तब तो गधे घोड़े आदि सभी जीव परमात्मा हो जायेंगे । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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