Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 52
________________ 41 अज्ञान से मोहित चित्त वाले तथा पाँच इन्द्रियों (के विषयों) के लोलुप पुरुष गुणी अन्य व्यक्तियों को जिन के नामों से पुकारते हैं। - धर्मरसायन जड़ ईसरणाम णरो भिक्खं भमिऊण भुंजए को वि। ईसरस्स गुणविहूणो किं सच्चं ईसरो होइ ॥ 129l यदि ईश्वरनामा नरः भिक्षां भ्रमित्वा भुङ्क्ते कोऽपि । ईश्वरस्य गुणविहीनः किं सत्यम् ईश्वरो भवति ||129|| यदि 'ईश्वर' नाम वाला कोई मनुष्य भिक्षा के लिए भ्रमण करके भोजन करता है तो क्या ऐश्वर्य अर्थात् ईश्वर के गुणों से रहित वह व्यक्ति वास्तव में ईश्वर हो सकता है ? सव्वण्डूणाम हरी तह लोए हरिहराइया सव्वे । सव्वण्डुगुणविरहिया किं सव्वे होंति सव्वण्हू ॥ 1301 सर्वज्ञनामा हरिः तथा लोके हरिहरादिकाः सर्वे । सर्वज्ञगुणविरहिताः किं सर्वे भवन्ति सर्वज्ञाः ॥ 130ll यदि हरि नाम ही 'सर्वज्ञ' है अर्थात् सर्वज्ञ का वाचक है तब तो लोक में हरि (विष्णु), हर (शंकर) आदि नामों वाले सभी व्यक्ति, जो कि सर्वज्ञ के गुणों से रहित हैं, सर्वज्ञ हो जायेंगे । जड़ इच्छइ परमपयं अव्वावाहं अणोवमं सोक्खं । तिहुवणवंदियचलणं णमह जिणंदं पयत्तेण ||131| यदि इच्छत परमपदं अव्याबाधं अनुपमं सौख्यम् । त्रिभुवनवन्दितचरणं नमत जिनेन्द्रं प्रयत्नेन ||131|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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