Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 63
________________ धर्मरसायन - 52 वहाँ कोई अप्सराएँ मनोहर गीत गाती हैं तो कोई सुन्दर अंगों वाली (अप्सराएँ) विलासी वेष धारण करके नृत्य करती हैं। को मज्झ इमो जम्मो रमणीओ आसमो इमो को वा। कस्स इमो परिवारो एवं चिंतेइ सो देओ ।।164|| किं मम इदं जन्म रमणीयं आसीदयं को वा । कस्यायं परिवार एवं चिन्तयति स देवः ।। 164|| 'क्या मेरा यह जन्म रमणीय है ? अथवा ये कौन हैं ? यह किसका परिवार है ? इस प्रकार वह देव सोचता है। णाऊण देवलोयं पुणरवि उप्पत्तिकारणं देओ। सव्वंगजायभासो वियसियवयणो य चिंतेइ ।।165।। किं दत्तं वरदाणं को व मए सोहणो तवो चिण्णो। जेण अहं सुरलोए उववण्णो सुद्धरसणीए ।।166।। ज्ञात्वा देवलोकं पुनरपि उत्पत्तिकारणं देवः । सर्वाङ्गजातभासः विकसितवदनश्च चिन्तयति।।165।। किं दत्तं वरदानं किं वा मया शोभनं तपः चित्तम् । येनाहं सुरलोके उपपन्नः शुद्धरसायाम् ||166|| तब देवलोक में अपनी उत्पत्ति को जानकर सर्वांगपूर्ण आभायुक्त तथा विकसित अर्थात् प्रसन्न मुख वाला वह देव देवलोक में अपनी उत्पत्ति के कारण का विचार करता है- 'क्या मैंने कोई श्रेष्ठ दान दिया अथवा क्या मैंने कोई श्रेष्ठ तप किया था जिसके कारण मैं देवलोक की पावन भूमि पर उत्पन्न हुआ हूँ।' णाऊण णिरवसेसं पुत्वभवे जिणपुज्जआ रइया । तो कुणइ णमोकारं भत्तीए जिणवरिंदाणं ॥1671 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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