Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 60
________________ 40 -धर्मरसायन उववासो कायव्वो मासे मासे चउस्सु पव्वेसु । हवदिय विदिया सिक्खासा कहिया जिणवरिंदेहि ।।154|| उपवास: कर्तव्यो मासे मासे चतुर्यु पर्वसु । भवति च द्वितीया शिक्षा साकथिता जिनेन्द्रैः ।।154|| प्रत्येक मास में तथा चारों पर्वो अर्थात् दोनों पक्षों की अष्टमी एवं चतुर्दशी को उपवास करना चाहिए - जिनेन्द्रों द्वारा यह द्वितीय 'प्रोषधोपवास' नामक शिक्षाव्रत प्रतिपादित किया गया है। असणाइचउवियप्पो आहारो संजयाण दादवो। परमाए भत्तीए तिदिया सा वुच्चए सिक्खा ।।155।। अशनादिचतुर्विकल्प आहारः संयतानां दातव्यः । परमया भक्त्या तृतीया सा उच्यते शिक्षा 11155।। अशन इत्यादिचार प्रकार का (भोज्य, पेय, चर्व्य एवं लेह्य) आहार परम भक्तिसे संयत मुनियों को देना चाहिए-यह तृतीय अतिथिसंविभाग' नामक शिक्षाव्रत बतलाया गया है। चइऊण सव्वसंगे गहिऊण तह महत्वए पंच । चरिमंते सण्णासंजंधिप्पइसा चउत्थिया सिक्खा ।।15611 त्यक्त्वा सर्वसङ्गान् गृहीत्वा तथा महाव्रतानि पञ्च। चरमान्ते संन्यासं यत् गृहणाति सा चतुर्थी शिक्षा ।। 156|| समस्त प्रकार की आसक्तियों का परित्याग करके तथा पाँच महाव्रतधारण करके, अन्त में संन्यास अर्थात् समाधिमरण ग्रहण करना ही चतुर्थ शिक्षाव्रत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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