Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 18
________________ धम्मोत्ति मण्णमाणो करे जो एरिसं महापावं । सो उप्पज्जइ णरए अणेयदुक्खावहे भीमे | 201 धर्मरसायन धर्म इति मन्यमानः करोति यः एतादृशं महापापम् । स उत्पद्यते नरके अनेकदुःखपथे भीमे ||20|| 'यही धर्म है' ऐसा मानकर जो पूर्वोक्त प्रकार का महापाप करता है, वह भयानक तथा अनेक दुःखों के मार्ग नरक में उत्पन्न होता है। तत्थुप्पण्णं संतं सहसा तं पक्खिऊण णेरड्या । सरिऊण पुव्ववरं धावंति समंतदो भीमा ॥21॥ तत्रोत्पन्नं सन्तं सहसा तं प्रेक्ष्य नारकाः । स्मृत्वा पूर्ववैरं धावन्ति समन्ततो भीमाः ||21|| उस (पापी) को वहाँ उत्पन्न हुआ देखकर भयानक नरकवासी (उससे सम्बन्धित) पूर्वकालीन वैर का स्मरण करके सभी ओर से उस पर टूट पड़ते हैं । सेल्लकोंतेहिं । कोहेण पज्जलंता पहरन्ति सरीरयं तस्स 112211 असिफरसुमोग्गरसत्तितिसूलेहिं असिपरशुमुद्गरशक्तित्रिशूलैः शेल्लकुन्तैः ॥ क्रोधेन प्रज्वलन्तः प्रहरन्ति शरीरकं तस्य ||22|| क्रोधाग्नि में जलते हुए वे (नरकवासी) तलवार, फरसा, गदा, शक्ति (एक प्रकार का अस्त्र), त्रिशूल तथा तीक्ष्ण भालों से उसके शरीर पर प्रहार करते हैं । गद्दापहारविद्धो मुच्छं गंतूण महियले पट्टा । अइकंटएहिं तत्थ विभिज्जड तिक्खेहिं सव्वंगं ॥23॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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