Book Title: Dharmrasayana
Author(s): Padmanandi, Vinod Sharma
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 29
________________ धर्मरसायन -18 उस पापी ने अन्य जन्म में जो असीम सम्पत्ति सञ्चित की थी, उसके फलस्वरूपवे उसके कन्धे पर एक भारी शिला रख देते हैं। पायंति पज्जलंतं महुमज्जफलेण कलयं घोरं। पंचुंबरफलभक्खणफलेन खावंति अंगारं।।57।। पाययन्ति प्रज्वलन्तं मधुमद्यफलेन लोहरसं घोरं। पञ्चोदुम्बरफलभक्षणफलेनखादयन्ति अङ्गाराणि||57|| मधु-मद्य पीने के फलस्वरूप उस पापी को वे जलता हुआ प्रचण्ड लौहद्रव (पिघला हुआलोहा) पिलाते हैं तथा पाँच उदुम्बरफलों के भक्षण के फल के रूप में अंगारे खिलाते हैं। मांसाहारफलेण य सव्वंग सुटुउव्व पीलंति। वल्लूरम्मिपित्तया वा कम्पतिअणप्पवसियस्स।15811 मांसाहारफलेन च सर्वाङ्ग सम्यक्रूपेण पीडयन्ति। वालुकायाम् तप्तायां वा क्रमयन्ति अनात्मवशस्य ||58|| मांसाहार के फल के रूप में वे पापी के सभी अंगों को पीडित करते हैं। अथवा तपी हुई बालू पर उस पराधीन को चलाते हैं। कुंभीपागेसु पुणो देहं पच्चंति पावयम्मस्स। पीसंति पुणो पावा जं खंध को वि भोगच्छी ।।5।। कुम्भीपाकेषु पुनः देहं पाचयन्ति पापकर्मणः । पेषयन्तिपुन:पापायत्स्कन्धंकोऽपिभोगस्त्रीम्।।5।। जो कोई पापात्मा वेश्यागमन करता है उसके शरीर को वे कुम्भीपाक (एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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