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१॥ लोक अलोकाकाश मोकार, उंचो चौद राज विस्ताररे ॥ मा० ॥ सात राज! देगे अधो लोक, मेरु कंदथी गणजो थोकरे ॥ मा ॥२॥ मेरु समो उंचो मध्य । लोक, तिहांथी सात राज मोद रोकरे ॥ मा० ॥ अधो सात राज मध्य एक, पूर्वावापर करजो विवेकरे ॥ मा० ॥ ३ ॥ ब्रह्म लोक राज ने पांच, एक राज उपर वली।
खांचरे ॥ मा० ॥ दक्षिण उत्तर सघले तास, वायु त्रण विधो विख्यातरे ॥ मा०॥ लोक मध्य उन्नी तस नाल, चौद राज जंची विशालरे ॥ मा ॥ त्रस नानि त्रस थावर नरी, एक राज विस्तारे करी बेरे ॥ मा ॥ ५ ॥ बाहेर नरीया थावर पंच बागम कहीए एड्वो संचरे ॥ मा॥ धनराज जाणो त्रिलोक, त्रणसें तेंताली थोकरे ॥ मा ॥६॥ कटीकर कीधो पुरुषाकार, अथवा मादल दोढ आकाररे ॥ |माण ॥ अर्ध मादल धर्यु अधो लोक, आ मादल उपर कयु थोकरे ॥ मा० ॥
अधो लोक जे नरकावास, ब राज मांहीं सात अवकासरे ॥ मा० ॥ एक राज अधोर हेगे लोक, थावर पांच जर्यो ते थोकरे ॥ माण ॥ ७ ॥ लोक त्रणनो घणो विचार, सिद्धांत थकी सुणजो साररे ॥ मा० ॥ कोणे नहीं ए सृष्टि निपाश, अनादि कालनी| एह सदारे ॥ मा० ॥ ए ॥ मिथ्याती एम कहे जे केता, जल व्याप्त ब्रह्मांडे वदेतारे॥
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