Book Title: Dharmpariksha Ras
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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धर्मपo
॥ १५० ॥
फूल जिनेश्वर अरचीया, केसर चंदन अगर कपूरे चरचीया ॥ कामलता गले हारें घाल्यो रमत मिषे, नाग डस्यो ततकाल पी जोंय तसे ॥ ४ ॥ मृत पुत्रीने देख अका कूटे हैयुं, आक्रंद करे यपार दैव तें शुं कीयुं ॥ करे विलाप अनेक नयणे यांसु ऊरे, घट सरप लेइ वेगे यावी नृप मंदिरे ॥ ५ ॥ करती हाहाकार कहे पोकार करी, देव सुणो अरदास सोमा अति मद जरी ॥ माहरी बाल हवे हुं केम करूं, हुं मोशी निराधार जीवित केणी परे धरूं ॥ ६ ॥ सोमा तेमावी राय कहे कुल खांपणी, कामलताने कांइ मारी तें पापिणी ॥ कहे सोमा महाराज वचन अवधारीए, जयणा सूक्ष्म जीव थूल केम मारीए ॥ ७ ॥ मांगी पूरव वात सोमाए सवी कही, देखाड्यो घट साप मित्रा अवसर लही ॥ पंच वरण फूलमाल सोमा हाथे धरी, मित्रा काले हाथ अहि याये फरी ॥ ८ ॥ वार त्रण एम नाग कुसुममाला दुवो, कहे सजा सहु कोय सोमा साची जुर्ज ॥ देखी चमक्यो भूप नहीं ए मानवी, प्रत्यक्ष देवी तेह एम मन थावी || कर जोमी करे राय सोमाशुं विनति, कामलता जीवाको अबो तुम महा सती ॥ मंत्र नवकार प्रजाव मूर्ग मटी ग, सती तणे करस्पर्श उठी बेठी थइ ॥ १० ॥ सुमित्रा निज करतूक प्रकाशी शुन मते, धर्म तणां फल देख लह्यो धर्म भूप ते ॥
खंग
॥ १५०

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